यह बात सही  है कि मैंने दुनिया के सबसे लंबे समुद्र तट पर हाल ही में छह सप्ताह बिताए . यह भी सच है कि यह मेरी ज़िंदगी के अद्भुत अनुभवों  में से एक रहा.  पर दरअसल यह बांग्लादेश का एक पर्यटन स्थल कोक्स बाज़ार  है, जो लगभग 155 किलोमीटर लंबा समुद्र तट है. हाल ही में यह क्षेत्र इसलिए चर्चा का विषय रहा है क्योंकि  यहां पड़ोसी देश म्यांमार से पलायन करने वाले लगभग 6,55,000 शरणार्थी शिविरों और बस्तियों में रह रहे हैं.

इस त्रासदी से रूबरू होने का मेरा यह छोटा और निजी अनुभव दिसंबर,  2017 में क्रिसमस के ठीक पहले ख़त्म  हो गया. आई सी आर सी के कम्युनिकेशंस डेलीगेट होने के नाते मैं उस टीम का हिस्सा थी, जो अभियान कोक्स बाज़ार में इस विस्थापित समुदाय की मदद के लिए चलाया जा रहा था. मेरी यह  यात्रा उस समय संपन्न हुई, जब मामला कुछ नियंत्रण में आ चुका  था. रोज़ाना नए आने वाले शरणार्थियों की संख्या में कमी आ रही थी और वहां मदद देने वाली स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां लोगों को मेडिकल सुविधाएं और  भोजन-पानी की ज़रुरी सहायता उपलब्ध कराना शुरू कर चुकी थी. स्थितियों को और बेहतर बनाने के लिए विभिन्न उद्यमों और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और अधिकारियों  द्वारा सभाएं और कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे थे.

कार्यस्थल पर मानवीय संस्थाओं और कार्यकर्ताओं की भारी संख्या मौजूद थी. एक समय हालत यह थी कि वहां कुल 89 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं काम कर रही थी. इनमें रेड क्रॉस रेड क्रेसेंट नेशनल सोसाइटीज की ही 27 सहयोगी संस्थाएं शामिल हैं.  यह अपने संचालकों और विशेषज्ञों के साथ कार्यस्थल पर मौजूद थी. मैं आई सी आर सी की उस टीम का हिस्सा थी, जिसमें सुरक्षा, स्वास्थ्य, पानी व स्थानीय माहौल और वातावरण, आर्थिक सुरक्षा और सहयोग से जुड़े विशेषज्ञ शामिल थे. इसी टीम के साथ जुड़े हुए थे प्रबंधन, आवाजाही, रसद सामग्री, रिकॉर्ड और कार्यालय संबंधी गतिविधियों का ब्यौरा रखने वाले हमारे अन्य सहयोगी. इनके अलावा कठिन परिस्थितियों में और कच्चे-पक्के रास्तों पर भी होशियारी से गाड़ी चलाते ड्राईवर.

शुरू में टीम छोटी थी पर जब स्थाई तौर पर संगठन का केंद्र स्थापित होना तय हो गया तो तेजी से नए लोग जुड़ते रहे और टीम का विस्तार हुआ. इस टीम के जज़्बे, उत्साह, भावना और अथाह समर्पण की भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया और इस वजह से इस टीम का हिस्सा बनना मेरे लिए यादगार अनुभव रहा.

किसी भी अन्य आई सी आर सी अभियान की तरह ही  यहां भी हमारी टीम ने एकजुटता दिखाते हुए कड़ी मेहनत  की और ज़रूरत पड़ने पर ज़रूरी सारे काम बखूबी अंजाम दिए. शुरुआती दौर में जब मैं वाटर एंड हैबिटैट यूनिट के साथियों के साथ वॉश यानी वॉटर एंड सैनिटेशन हाइजीन की क्लस्टर  मीटिंग में शामिल हुई तब मुझे अंदाजा भी नहीं था कि वहां क्या हो रहा है. बाद में जब मेरे द्वारा लिए गए नोट्स इंजीनियरों के लिए मददगार साबित हुए तब मुझे काफी ख़ुशी का एहसास हुआ.

यह  मेरे जैसे व्यक्ति के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, जिसको तब तक ट्यूबवेल जैसी चीज़ के बारे में कुछ भी पता नहीं था. एक बड़े पैमाने की विपदा के समय हमारी टीम ने दिन-प्रतिदिन जो बढ़िया प्रदर्शन किया, वो इस आपातकालीन प्रतिक्रिया मैकेनिज्म में हमारा उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण योगदान रहा.

ब्रिटिशपारा शिविर में हलके-फुल्के खेल भरे और ख़ुशी के पल मिल ही जाते थे. बच्चों की मुस्कान और हंसी सीधे दिल में उतर कर सबको अपनी गिरफ्त में ले लेती थी. ©आई सी आर सी, जैकलीन फर्नांडिस

 

आई सी आर सी के बेहतरीन और प्रभावशाली काम से संबंधित आंकड़ों की जानकारी

25 अगस्त,  2017 से लेकर अब तक सीमा पार करके म्यांमार  से बांग्लादेश में  करीब 6,88,000 लोग शरण ले चुके है. इनकी दयनीय हालत पर मीडिया ने कहानियों और फोटो के तौर पर काफी अच्छी कवरेज की है. शरणार्थियों के विस्थापन तथा उन्हें स्वदेश भेजे जाने पर चल रही बातचीत के मद्देनज़र इस मामले पर पूरे विश्व का मीडिया गहरी रूचि ले रही थी.

कुछ ख़ास फोटोग्राफ्स और कहानियों की तलाश में पत्रकारों का जमावड़ा लगातार अलग-अलग शिविरों और बस्तियों में घूम रहा था. पत्रकार अपनी कहानियों के साथ मेल खाती फोटो की तलाश में भी रहते थे. आई सी आर सी के काम में भी दुनिया भर के पत्रकारों ने अपनी रूचि दिखाई. ख़ास तौर से रोम, स्पेन, ब्राज़ील, अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, फिलीपींस और स्विट्ज़रलैंड की मीडिया ने. पत्रकारों ने शिविरों और बस्तियों में घूम-घूम कर समुदाय के लोगों की कहानियां और अनुभव सुने और उन पर काफी कुछ लिखा. साथ ही वो इन लोगों के अनुभवों की कहानियों से जुड़ी पीड़ा, स्थिति और वेदना को दर्शाती कुछ ख़ास फोटो भी लगातार तलाशते रहे.

बांग्लादेश रेड क्रेसेंट सोसाइटी के समर्पित कार्यकर्ताओं के साथ काम करते हुए हमारे डॉक्टरों की टीम ने तीन महीनों  के दौरान लगभग 30,000 ( यह संख्या अब 40,000 के करीब ) लोगों का उपचार किया. हमारी आर्थिक सुरक्षा टीमों ने 80  हज़ार लोगों को खाद्य और अखाद्य  सामग्री  उपलब्ध कराई. इनमे से 40 हज़ार लोगों को  मासिक राशन दुबारा भी उपलब्ध कराया गया. इस दौरान शिविरों में हज़ारों लोगों को पानी, साफ-सफाई और हाइजीन का उपयुक्त माहौल उपलब्ध कराया गया. करीब  8,500 लोग वापस अपने परिवारों के संपर्क में लौटे.

जितने समय मैं वहां रही, मेरा प्रयास रहा कि मैं फील्ड ट्रिप के ज्यादा से ज्यादा मौकों पर उपलब्ध रहूं. न केवल वहां से आंकड़े  और जानकारी जुटाने के दौरान  बल्कि टीम के साथ कार्यस्थल पर किए जा रहे काम का हिस्सा बने रहने के लिए भी. हालांकि हमारी आर्थिक सुरक्षा टीम के सदस्यों द्वारा  किया जा रहा काम आसान लग रहा था पर जल्द ही मुझे समझ आ गया कि एक बार में पांच हाइजीन किट उठाना उतना आसान काम नहीं है, जितना दूर से लगता था.

मैंने प्रत्यक्ष तौर पर देखा और जाना कि हमारे कार्यकर्ता  किस तरह  काम करते हैं और लोगों में  हमारी संस्था, उसके उद्देश्यों, मूल्यों और सिद्धांतों  के प्रति जागरूकता कैसे बढ़ाते हैं. मैंने यह भी करीब से देखा कि अपनी दिन-प्रतिदिन की बातचीत में यह टीम और उसके सदस्य ज़रुरी मुद्दों और ज़रूरतों पर बातचीत और विचार- विमर्श के ज़रिए उपयुक्त या संभव हो सकने वाले समाधान कैसे खोजते हैं. मैंने इस बात को भी समझा कि हमारी संस्था और टीमें लोगों का भरोसा कैसे जीतती हैं और सरकारी अधिकारियों तथा स्थानीय समुदाय के लोगों द्वारा जताए गए भरोसे पर खरा उतरने में कैसे कामयाबी  हासिल करती हैं.

यह सफलता वो उन अधिकारियों और समुदाय के साथ मिल कर प्राप्त करती हैं, जो विस्थापितों का खुले  दिल से स्वागत करते हैं और मेहनत तथा प्रयासों से थक कर चूर होने के बावजूद उत्साह और मदद का जज़्बा बरकरार रखते हैं.  मुश्किल और अनिश्चित परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे विस्थापितों को बेहतर स्थितियां उपलब्ध कराने के लिए यह लोग दिन-रात बिना रुके काम करते रहते हैं.

उन्चिप्रांग में समुदाय के नेताओं के साथ हमारे क्षेत्रीय निदेशक की बातचीत सुनने के लिए जमा हुई भारी भीड़. ©आई सी आर सी, जैकलीन फर्नांडिस

 

उन्चिप्रांग का अविस्मरणीय ‘’छाता’’ अनुभव

इस पूरे प्रकरण में मुझसे जो सवाल सबसे ज्यादा पूछा गया, वो यह नहीं था कि इन शिविरों में आपका अनुभव कैसा रहा  बल्कि यह कि ऐसा कौन सा अनुभव है, जो मेरे लिए यादगार रहा.

मेरे लिए इन विस्थापितों की उदारता और जज़्बा सबसे  ख़ास बात रही. अपने भविष्य के प्रति इतने अनिश्चित माहौल में रहते हुए भी उनकी सहृदयता और मानवीयता से जुड़ी संवेदना और भावना  ने मेरे दिल को भीतर तक छू लिया. इनमें भी सबसे यादगार घटना  उन्चिप्रांग की यात्रा के दौरान घटी.

’छाते’’ से जुड़ा एक ऐसा अनुभव, जो मन में रच बस गया

पिछले साल नवंबर के दौरान मैं उस टीम की सदस्य थी, जो हमारे क्षेत्रीय निदेशक की अगुवाई में उन्चिप्रांग में उस समुदाय के कुछ नेताओं से मुलाकात करने गई थी. देखते ही देखते हमारे चारों ओर भीड़ जमा हो गयी और फोटो खींचने में व्यस्त होने के कारण मैं उस  झोंपड़ी के बाहर ही रह गई, जिसमें  उनकी मुलाकात हो रही थी. वहीं पास बैठा एक परिवार मुझे उत्सुकता और कौतूहल से देख कर अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि रेड क्रॉस का परिचय पत्र गले में डाले हुए यह अजनबी ‘’गोरी मेम’’ कौन है. मैं भीड़ के सबसे पीछे खड़ी बाहर से ही बातचीत सुनने की कोशिश कर रही थी कि अचानक ऐसा महसूस हुआ कि मुझ पर पड़ रही तेज धूप हट गई है. मुड़ कर देखा तो उस परिवार के एक नन्हे सदस्य ने मुझे तेज धूप से बचाने के लिए छाते से छाया कर दी थी.

यह स्मृति और उस लड़के का यह मानवीय पहलू से ओतप्रोत जज़्बा मेरी यादों में हमेशा के लिए कैद हो गया है.