लखनऊ के जय शंकर प्रसाद कांफ्रेंस हॉल में 9 अगस्त का ये एक खचा खच भरा हुआ दिन था । मौका था ‘आपात स्थिति में पत्रकारिता और रिपोर्टिंग की नीतिओं के समक्ष चुनौतिओं’ के विषय पर एक दिन की कार्यशाला का I इस कार्यशाला में  भाग लेने के लिए कई वरिष्ठ पत्रकार, मीडियाकर्मी सहित ऐसे लोग शामिल हुए जो रिपोर्टर या एडिटर के तौर पर अपनी आजीविका स्थापित करना चाहते हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्य था उन चुनौतियों  के बारे में चर्चा करना जो आपातकाल के समय एक पत्रकार के समक्ष आती हैं। इसके अलावा आपातकाल में रिपोर्टिंग के दौरान किन नीतिओं का पालन करना चाहिए, यह विषय भी इस एक दिन की कार्यशाला का अभिन्न अंग था। कार्यशाला का आयोजन रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति नई दिल्ली की सहायता से तथा माध्यम व ए.पी.वी स्कूल ऑफ़ मीडिया स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च संयुक्त प्रयासों से हुआ ।

इस कार्यशाला की शुरुवात ए.पी.वी स्कूल ऑफ़ मीडिया स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च से आये श्री गोपाल मिश्रा ने अपनी टिप्पणी से की। उनके बाद रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति, नई दिल्ली के राजनीतिक एवं संचार सलाहकार श्री सुरिंदर ओबेरॉय ने कार्यशाला के उद्देश्य और बुनियादी बातों को सभी के समक्ष रखा । इसके साथ ही इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन (भारतीय जनसंचार संस्थान ) के प्रोफेसर श्री के.एम. श्रीवास्तव ने समाज में मीडिया के किरदार तथा सटीक रिपोर्टिंग की जिम्मेदारियों के बारे में उपस्थित सदस्यों को जानकारी दी । उन्होंने अनावश्यक रूप से सनसनीखेज़ ख़बरों के बढ़ते चलन की ओर सभी का ध्यान खींचने के साथ साथ सभा में मौजूद सभी सदस्यों से आपदा या आपातकाल की स्तिथि में ऐसी गतिविधियों से दूर रहने तथा इस तरह की ख़बरबाज़ी से बचने की अपील की ।

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मुख्य सम्बोधन बंबई और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री विष्णु सहाय द्वारा किया गया जिसमे उन्होंने स्वतः सीमा के सिद्धांत के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया की व्यक्ति को किसी बाहरी सीमा के अभाव में स्वयं की आलोचना करनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया की ये गुण किसी में तभी आ सकते हैं जब व्यक्ति दूसरों का सम्मान करे। अपने सम्बोधन में उन्होंने सभी मीडियाकर्मिओं से समाज के प्रति संवेदनशीलता रखने की अपील की।

वरिष्ठ पत्रकार राहुल जलाली ने आपात स्थितियों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संवाददाता के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि नैतिकता अंतत: किसी के व्यक्तिगत सिद्धांतों और मूल्यों से ही परिभाषित होती है। उनका कहना था की ‘सच’ एक धारणा होती है क्योंकि हो सकता है की जिसे आप सच मान कर चल रहे हों वो स्तिथि को देखने का एक बिंदु हो, इसीलिए पत्रकारों को ख़बरों का प्रसारण शुरू करने से पहले स्थिति का अच्छी तरह से आकलन कर लेना चाहिए।

आखिर में समापन सम्बोधन लखनऊ के पूर्व महापौर तथा प्रख्यात विद्वान दाऊजी गुप्ता ने किया। उनके सम्बोधन के उपाख्यानों और मीडिया के विषय में अंतर्दृष्टि और गहरे विचार मीडिया के छात्रों और युवा पत्रकारों के लिए विशेष रूप से उत्साहजनक थे।

 

इस कार्यशाला की तस्वीरें (@आई.सी.आर.सी, आशीष भाटिया)