इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस और उसके सहयोगियों द्वारा आयोजित एनेबल मैकाथन 2.0 अभियान में टीम ब्लीटेक ने 25,000 अमरीकी डॉलर का पहला पुरस्कार जीता. इस टीम ने श्रव्य रूप से विकलांग लोगों के लिए किफायती एनसाइक्लोपीडिया तैयार किया.
इस टेक्नोलॉजी की मदद से बहरे व्यक्ति अपने फ़ोन पर संकेत भाषा यानी साइन लैंग्वेज में सवाल पूछ सकते हैं और उत्तर हासिल कर सकते हैं. यूनाइटेड किंगडम की गेमएबल टीम ने दूसरा पुरस्कार जीता. उन्होंने हावभाव को पकड़ने पर आधारित ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जिसकी मदद से विकलांग व्यक्ति भी सामान्य या आम लोगों की तरह कोई भी विडियो गेम खेल सकते हैं. तीसरे स्थान पर अमरीका की टीम नॉनस्पेक रही. नॉनस्पेक ने घुटनों के जोड़ों की समस्या से प्रभावित व्यक्तियों के लिए आसानी और तेजी से इस्तेमाल किया जा सकने वाला किया प्रोस्थेटिक उपकरण तैयार किया है. यह हलके वज़न वाला एक अत्यंत प्रभावी उपकरण है, जिसे काफी कम लागत में तैयार किया गया. गेमएबल टीम को इनाम में 15,000और नॉनस्पेक को 10,000 डॉलर हासिल हुए.
दिल्ली में आज आयोजित एक भव्य और उत्साहपूर्ण समारोह में जजों के पैनल ने तीनो विजेताओं की घोषणा की. इन टीमों ने डेमो दिवस के फाइनल में अपने उपकरणों का प्रदर्शन किया. इस पैनल में राष्ट्रीय डिजाईन संस्थान के प्रतिनिधि और विकलांग लोगों की समस्यायों को सुलझाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कई व्यक्ति शामिल थे. मैकाथन में लगभग 100 प्रविष्टियों में से चुनी गई इन नौ टीमों ने 60 दिन के सहनिर्माण शिविर में कड़ी मेहनत की. कड़ी प्रतिस्पर्धा के माहौल वाले इसी शिविर में उन्हें अपने आईडिया को कार्यान्वित करने का मौका और मार्गदर्शन मिला.
एक इनक्यूबेशन सेल सोशल अल्फा ने एनेबल मैकाथन की चार टीमों- ऍमपारो,नॉनस्पेक, टॉर्चइट और गेमएबल को तीन महीनों के लिए शुरूआती सहयोग और सहायता देने की भी घोषणा की.
‘एनेबल मैकाथन चैलेंज ’ के निर्णायक दौर में देश और दुनिया से चुनी हुई नौ टीमों ने भाग लिया. इन्होने ही आखिरी दिन यानी demo दिवस में अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया. इन नौ टीमों का चयन विश्व भर से आई लगभग 100 प्रविष्टियों से किया गया था. इन टीमों ने संसाधनों की कमी वाले क्षेत्रों में विकलांगता से प्रभावित लोगों की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए नई खोज और समाधानों वाले उपकरणों को प्रदर्शित किया. एनेबल मैकाथन का दूसरा संस्करण लंदन के ग्लोबल डिसएबिलिटी इनोवेशन हब के साथ साझा तौर पर भारत और यूनाइटेड किंगडम में एक साथ आयोजित किया गया.
इस अवसर पर मुख्य भाषण देने के लिए आमंत्रित भारतीय पैरालिम्पिक समिति के अध्यक्ष राव इंद्रजीत सिंह ,ने कहा कि सरकार विकलांगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज में विकलांगता से जुड़ें कलंक और भ्रांतियों को दूर किया जाए, एनेबल मैकाथन जैसे अभियान इस उद्देश्य में हमारा पूरा साथ दे रहे हैं.
आई सी आर सी के भारत,नेपाल, भूटान और मालदीव क्षेत्रीय दल के प्रमुख जेरेमी इंग्लैंड ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि ‘’नई खोजों के रूप में टीमों द्वारा पेश किये गए समाधान वाकई प्रभावशाली हैं और उनसे काफी फर्क पड़ेगा. एनेबल मैकाथन का मूलमंत्र ही विकलांग व्यक्तियों के लिए समावेश, सहयोग और असरदार साबित होने वाले विकल्प खोजना है और उस कसौटी पर इन टीमों के प्रयास काफी उत्साहवर्धक हैं. विकलांग व्यक्तियों की ज़रूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए उपकरण ही कारगर साबित होंगे. हमारा प्रयास है कि जिन लोगों को इनकी ज़रूरत है, उनको यह उपकरण मुहैया कराए जा सकें. इसे अंतिम रूप देने के लिए ही सहयोगियों के साथ तालमेल का यह फाइनल दौर है.’’
इस अवसर पर आई सी आर सी के इनोवेशन प्रमुख तरुण सरवाल ने कहा कि , “एनेबल मैकाथन एक अभूतपूर्व और अतिविशिष्ट सामजिक आन्दोलन है. इसमें विकलांगता से प्रभावित लोग रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में अपने सामने आने वाली कठिन चुनौतियों का निदान ढूँढने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के एक दल के साथ कंधे से कंधा मिला कर .समाधान और विकल्प तलाशते हैं. एनेबल मैकाथन चैलेंज के तहत हम हुनरमंद खोजकर्ताओं को एक ऐसा मंच मुहैया करना चाहते थे, जहां वो भारत के ग्रामीण इलाकों में रह रहे विकलांगों की मदद के लिए ही सहायक लोकोमोटिव उपकरण तैयार कर सकें पहले संस्करण की तरह एनेबल मैकाथन अभियान 2.0 भी काफी सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और इसमें दुनिया भर के कोने-कोने तथा देश के तमाम भागों से आई कई प्रतिभाशाली टीमों ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया. इन टीमों ने विकलांग व्यक्तियों के लिए मददगार साबित होने वाले ऐसे प्रभावशाली समाधान और विकल्प पेश किये, जो वाकई में काफी असरदार हैं.’’
एनेबल मैकाथान 2.0 अभियान आई सी आर सी की वो पहल है, जिसे इस बार लंदन के ग्लोबल डिसएबिलिटी इनोवेशन हब के सहयोग से आयोजित किया गया है. जी डी आई हब के अलावा भी कई अन्य भागीदार भी इस अभियान में विशेष सहयोग और समर्थन दे रहे हैं. इनके नामों की सूची इस प्रकार है. वी – शेष, एप्लाइड सिंगुलैरिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन, ग्लोबल शेपर्स बैंगलोर, ग्लोबल ह्यूमैनिटेरियन लैब, प्रोजेक्ट डी ई ऍफ़ वाई , द असोसिएशन ऑफ़ पीपल विथ डिसेबिलिटी , इनोवेशन ऐल्केमी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी रुड़की, आई के पी ईडेन, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट बैंगलोर, फोर्मुलेट आई पी और इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी.
विकलांगों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने के लिए किफायती गैजेट्स और मददगार उपकरण मुहैया कराने के लिए इन टीमों ने 60 दिनों के सहनिर्माण शिविर में दिन-रात कड़ी मेहनत की. हर टीम में विकलांग व्यक्तियों के अलावा तकनीकी और डिजाईन विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, खोजकर्ता और मार्गदर्शक मौजूद थे.