प्रेस इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (पीआईआई) और अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (आईसीआरसी) के संयुक्त प्रयास से, 10 नवंबर 2016 को, दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 10वें वार्षिक पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया । आपको बता दें कि पीआईआई-आईसीआरसी हर साल मानवीय विषयों पर बेहतरीन फोटो और रिपोर्ट को सम्मानित करता है।  ये न सिर्फ शहरी युवा पत्रकारों को, बल्कि दूर-दराज़ के क्षेत्रों में  रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों को भी मानवीय विषयों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करता है।

कौंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के अध्यक्ष और पूर्व विदेश सचिव प्रोफेसर मुचकुंद दुबे की अध्यक्षता में 10वें वार्षिक समारोह की शुरुवात “प्राकृतिक और मानव-निर्मित आपदा के दौरान पीड़ितों की रिपोर्टिंग” विषय पर चर्चा से हुई।  इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक, पामेला फिलिपोज, जामिया मिलिया इस्लामिया में, नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रेसोलुशन में प्रोफेसर और डायरेक्टर तसनीम मीनाई और वरिष्ठ पत्रकार, प्रताब रामचंद ने भाग लिया।

मुचकुंद दुबे ने अपने अभिभाषण में दुनियाभर में आपातकालीन स्थिति में आईसीआरसी के कोशिशों की तारीफ़ की और मीडिया से अपील की, कि किसी भी आपदा के समय पीड़ित लोगों के प्रति थोड़ी संवेदनशीलता दिखाई जाए। मीडिया द्वारा असंवेदनशीलता का उदाहरण देते हुए पामेला फिलिपोज ने नेपाल त्रासदी के समय मीडिया के एक बड़े तबके के गैर-जिम्मेदार रवैये का जिक्र किया।  उन्होंने मीडिया में आत्म-निरीक्षण की बढ़ती जरूरत पर जोर देते हुए कहा की पत्रकारों को मिलने वाले सम्मान से ज्यादा महत्व उस कहानी, रिपोर्ट की होती है जिसके लिए सम्मान मिलता है।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए तसनीम मीनाई ने कहा कि आज के दौर में जहाँ सोशल मीडिया आ जाने के कारण सूचना ब्रॉडकास्ट करने की ताकत हर आम आदमी के पास आ गयी है, ऐसे में जरूरत है कि ज़िम्मेदारी से, निष्पक्ष रूप से और स्वतंत्र तरीके से घटना को सटीक और मानवीय तरीके से रिपोर्ट किया जाए। इसके अलावा उन्होंने मुख्यधारा की मीडिया में मानवीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत पर जोर दिया । प्रताब रामचंद ने अपने संक्षिप्त कथन में प्राकृतिक आपदाओं को इंसानों के लालच और गैर-जिम्मेदार रवैये को जिम्मेदार ठहराया । इंटरनेट के आ जाने से सूचना के आदान-प्रदान में आयी क्रांति के बारे में बात करते हुए आईसीआरसी रीजनल डेलीगेशन के प्रमुख जेरेमी इंग्लैंड ने युद्ध से ग्रसित देश सीरिया में बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से बंकर में दिए जा रहे शिक्षा का उदाहरण दिया। सीरिया में लाखों लोग पेयजल का स्रोत होते हुए भी जानकारी के अभाव में आईसीआरसी द्वारा दिए जाने वाले सहायता पर निर्भर थे । ऐसे में सोशल मीडिया की मदद से लोगों को पेयजल के स्रोतों की जानकारी पहुँचाई गई।

इस चर्चा के बाद मौक़ा था सवाल-जवाब का जिसमे कश्मीर में रिपोर्टिंग के दौरान आने वाली मुश्किलों समेत, आपदा प्रबंधन में तकनीकि सहायता को बढ़ाने से संबंधित सवाल किए गए जिसका जवाब पैनल में मौजूद अतिथियों ने दिया । इसके बाद वार्षिक पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर मुचकुंद दुबे की अगुवाई में वर्ष 2016 के श्रेष्ठतम फोटो और रिपोर्ट को सम्मानित किया गया । पुरस्कारों के विवरण इस प्रकार हैं।

 

बेस्ट फोटो अवार्ड :

प्रथम स्थान – बी. मुरली कृष्णन

द्वितीय स्थान – मुरुगराज लक्ष्मण

 

बेस्ट रिपोर्टिंग अवार्ड:

प्रथम स्थान – संतोष जॉन थूवल और रुबिन जोसफ

द्वितीय स्थान – प्रियंका काकोडकर

तृतीय स्थान – सम्राट सिन्हा

 

मुरुगराज ने अपनी तस्वीर से अधिकारियों का ध्यान चेन्नई में आये बाढ़ की भयावहता की तरफ खींचा था । जब वो और उनका परिवार खुद पानी में फँस गए, तब उन्होंने सबको अपनी बिल्डिंग के छत पर जाने को कहा । इस अफ़रा-तफ़री में उन्हें केवल अपना कैमरा उठाना याद रहा, जिससे ली गयी फोटो ने शायद सैंकड़ों लोगों की न सिर्फ जान बचाई बल्कि जान और माल का और नुकसान होने से बचाया । प्रियंका काकोडकर ने अपनी रिपोर्टिंग के बारे में सबको बताते हुए पत्रकारों को कैमरे ले सामने आने के लालच से दूर रहने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि रिपोर्टिंग के दौरान सारा ध्यान केवल और केवल पीड़ित पर ही केंद्रित होना चाहिए ।

तेज़ी से भागती दुनिया में पत्रकारिता और भी मुश्किल होती जा रही है । मौके पर मौजूद रिपोर्टर के ऊपर, मौके के हालात, रिपोर्टिंग अफ़सर के नियम, और एजेंडा के साथ-साथ स्थानीय राजनीति भी हावी होती है । केवल इसी साल करीब 36 पत्रकार अपनी जान गँवा चुके हैं । मानवीय कहानियों पर रिपोर्टिंग जितनी मुश्किल होती जा रही है, रिपोर्टर या पत्रकार को ज़मीनी स्तर पर अपने संस्थान से उतनी ही कम सहायता मिलती है । चिंता का विषय ये भी है कि संस्थाएं आपातकालीन स्थिति में रिपोर्टिंग के नियमों का सही ढंग से पालन नहीं करती है जिससे, बचाव अभियान में समस्या आने के साथ-साथ जाने अनजाने में जान और माल का नुकसान भी हो जाता है ।

ये मान्यता है कि मुख्यधारा की मीडिया मानवीय विषयों पर कम ध्यान देते हैं । ऐसे में सभी विजेताओं की हिम्मत की तारीफ़ बनती ही है । इस तरह के और इस स्तर के सम्मान समारोह में ज़मीनी स्तर पर किये रिपोर्टिंग को सम्मान मिलने से न सिर्फ उन पत्रकारों को हौसला मिलता है, बल्कि उनसे जुड़ी संस्थाएं और भी मानवीय विषयों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित होती हैं । उम्मीद है कि इस तरह की कोशिशें ज़मीनी स्तर पर रिपोर्टिंग को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा और सकारात्मक रूप से मानवीय विषयों पर रिपोर्टिंग को बढ़ावा देगा ।

समारोह की कुछ तसवीरें: