जिल  कार्बोनियर, उपाध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति (आईसीआरसी) ने 7 – 11 जनवरी 2019 को भारत का दौरा किया। वे यहाँ पर चौथे रायसीना वार्ता में भाग लेने आये थे। रायसीना वार्ता ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) तथा विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा आयोजित ट्रैक II वार्षिक कार्यक्रम है । रायसीना वार्ता में जिल  कार्बोनियर, सेन्टर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी से कारा फ्रेडरिक, रेनाता ड्वान, निदेशक, यू एन इंस्टीच्यूट फॉर डिसार्मामेंट रिसर्च और मेजर जनरल सुसेन रिज, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस, यू के के साथ, “अकाउंटेबल ऑटोनॉमी: व्हेन मशीन किल्स” विषय पर एक पैनल परिचर्चा में शामिल हुए। इस परिचर्चा का सभापतित्व हैन्स-क्रिश्चियन हैगमैन, विदेश मंत्रालय, स्वीडेन के द्वारा किया गया था। आईसीआरसी के उपाध्यक्ष ने लेथल ऑटोनोमस वीपन्स सिस्टम्स (एल एड ब्लू एस) तथा ए आई-पावर वाले सैन्य अनुप्रयोगों में मानव-केन्द्रित दृष्टिकोण अपनाने की, तीव्र आवश्यकता पर काफी बल दिया। हथियारों के विकास में, “अर्थपूर्ण मानवीय नियंत्रण” का पक्ष लेते हुए, पैनल के वार्ताकारों ने अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (आई एच एल), विशेष रूप से जेनेवा सम्मेलनों के पहले अतिरिक्त नवाचार की धारा 36, पर एक घंटे की उत्साहवर्धक परिचर्चा की और एक हजार से अधिक लोगों की भीड़ ने इसे काफी ध्यान से सुना। अग्रणी संगठन के रूप में, आईसीआरसी के मानवीय मूल्यों का विस्तार से वर्णन करते हुए, जिल  ने बताया कि कैसे ए आई के द्वारा विनियमित शस्त्रीकरण, उन स्थानों पर हथियार ढोने वाले और आम नागरिकों के बीच फर्क स्थापित करेगा, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति बंदूकों के साथ चलता है, यदि तैनाती के चरण में केवल मशीन ही निर्णय लेने के लिए बचे हुए हैं। वीडियो: जिल  कार्बोनियर आईसीआरसी के वैश्विक मानवीय कार्यों पर बोलते हुए

भारत में आईसीआरसी के उपाध्यक्ष ने, विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणालियों (आर आई एस) द्वारा आयोजित एक ब्रेकफास्ट सेमिनार में, “विकास के मॉडल और मानवीय मुद्दे” विषय पर अपनी बातें रखीं। इस सेमिनार के सभापति थे, डॉ. यासमीन अली हक, प्रतिनिधि, यूनीसेफ इंडिया। जिल  ने मानवीय-विकास-शांति के आपसी तारतम्य और सतत् विकास के लक्ष्यों (एस डी जी) की प्राप्ति से इसके जुड़े होने  पर, आईसीआरसी की सोच को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि मानवीय कृत्यों, विकास और शांति के तार आपस में जुड़े रहने के कारण, इन तीनों क्रियाकलापों को करने वाले व्यक्तियों पर, अपने योगदान को सबके सामने लाने का एक दबाव होता है, जो उनके विचार में पूरी तरह से अनावश्यक दबाव है। इन कमियों को दूर करने के लिए, उन्होंने तीन उपायों पर बल दिया: संवेदनशील समूहों और स्थानीय कारकों का समावेश: नवीन साझेदारियों के साथ आघात-प्रतिरोधी प्रणालियों के निर्माण; तथा सीमाओं के भीतर तटस्थ, निष्पक्ष, स्वतंत्र, मानवीय कार्रवाई (एन आई आई एच ए) के लिए स्थान सुरक्षित बनाए रखना। उपाध्यक्ष ने एशिया-अफ्रीकी कानूनी परामर्श संगठन (ए ए एल सी ओ) में “मानवता और दक्षिण-दक्षिण सहयोग” विषय पर अपना मुख्य अभिभाषण दिया। अपने अभिभाषण में वे दाताओं के विविधीकरण और  मानवीय प्रतिक्रिया पर बोले। उन्होंने कहा कि “गैर-पारंपरिक” दाता, अपने उद्देश्य, अनुभवों, कौशल्य और कार्यसूचियों को आगे बढ़ा रहे हैं और इस प्रकार पश्चिमी राज्यों की पारंपरिक पकड़ को चुनौती दे रहे हैं। इसलिए, अब सारा दारोमदार आईसीआरसी तथा रेडक्रॉस और रेड क्रीसेंट (आरसीआरसी) जैसी सहायता उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं पर है कि वे दाताओं और जन समुदायों की प्रासंगिकता और उनके प्रभाव को साबित करके दिखाएँ। उनके अभिभाषण के उपरांत, स्वशासी शस्त्र प्रणालियों, कृत्रिम आसूचना तथा सशस्त्र संघर्ष विषय पर ए ए एल सी ओ-आईसीआरसी का एक संयुक्त सेमिनार हुआ, जिसमें क्नुत डोरमेन, आईसीआरसी के विधि विभाग के प्रमुख की सहभागिता देखी गई। उपाध्यक्ष का यह दौरा, मानवीय कार्यवाहियों के लिए नवीन तकनीकों के उत्पादन और उनपर शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तथा आई एच एल के अधीन युद्ध के नए तकनीकों के अनुपालन का लक्ष्य रखकर, आईआईटी-आईसीआरसी के “मानवीय नीति और तकनीकी प्लेटफार्म” के उद्घाटन के साथ समाप्त हुआ। उपाध्यक्ष का यह दूसरा भ्रमण था, पहला दौरा 1986 में एक छात्र के रूप में था। अपने पहले दौरे के बारे में बताते हुए, वे देश की ऊर्जा और विविधता के अपने अनुभव, कुंभ मेला का मंत्रमुग्ध कर देने वाला भ्रमण और भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में जानकारी पर भी बोले।