विश्व रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट दिवस 2019 पर, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी (आई.आर.सी.एस.), द इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाय़टीज (आई.एफ.आर.सी.) तथा द इंटरनेशनल कमिटि ऑफ द रेड क्रॉस (आई.सी.आर.सी.), आपदा के दौरान बेहतर तैयारी और पुनर्वास सेवाओं का संकल्प लेने के लिए एक साथ आए।
आर.के. जैन, महासचिव, आई.आर.सी.एस. ने दिल्ली स्थित आई.आर.सी.एस. के राष्ट्रीय मुख्यालय में बोलते हुए कहा कि भारत ने एक वर्ष से कम समय में ही दो प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है और रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट मूवमेंट को अनेक मील के पत्थरों को अभी पार करना है। उन्होंने कहा, “इन आपदाओं के प्रबंधन के लिए हमें मिल रही प्रशंसा, हमें बेहतर कार्य निष्पादन के लिए प्रेरित करेगी और यह भरोसा दिलाया कि अगली बार राहत सामग्रियाँ ऐसी आपदाओं के आने से पहले ही लोगों तक पहुँच जाएँगी।“
इसका गुणगान करते हुए, ईव हेलर, रीजनल डेलीगेशन के प्रमुख, आई.सी.आर.सी. ने सभी को उनके कठिन परिश्रम के लिए बधाई दी और कहा, “दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या के साथ, केवल आर.सी.आर.सी. मूवमेंट की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।“ चूंकि विश्व रेड क्रॉस दिवस का थीम ‘#प्यार’ था, तो मारवॉन जिलानी, भारत, श्रीलंका, भूटान तथा मालदीव के लिए नवनियुक्त हेड ऑफ कंट्री क्लसटर सपोर्ट टीम, आई.एफ.आर.सी. ने कहा कि वह लोगों के इतने बड़े आश्चर्यजनक नेटवर्क का हिस्सा बनने के काम को बहुत प्यार करते हैं, जो जरुरतमंदों को राहत उपलब्ध कराते हैं।
मूवमेंट के सहभागियों ने इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (आई.एच.एल.) पर, विशेषकर रेड क्रॉस के प्रतीक-चिह्न पर चर्चा की। दुनिया भर में, रेड क्रॉस तथा इससे संबद्ध प्रतीकों, द रेड क्रीसेंट तथा रेड क्रिस्टल, ने आशा और मानवता का संचार किया है। इस दिन यह परिचर्चा प्रतीक-चिह्नों के महत्व पर केन्द्रित रही, क्योंकि यह इस मूवमेंट के सिद्धांतों को स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है – सबसे महत्वपूर्ण में से एक है, तटस्थता का सिद्धांत।
रेड क्रॉस के प्रतीक-चिह्न की सार्वभौमिक पहचान और आकर्षण रहने के कारण, दुनिया भर में इसका दुरुपयोग एक आम बात है जो विश्वासघात के स्तर तक पहुंच सकता है । यह मामला एक गंभीर विषय है क्योंकि मानवीय कामगारों का एक मजबूत नेटवर्क, अपने क्रियाकलापों को करने के लिए इन प्रतीक-चिह्नों की स्वीकार्यता पर निर्भर करता है। अनुराधा साईबाबा, हेड ऑफ लीगल डिवीजन, आई.सी.आर.सी. ने स्पष्ट रूप से बताया कि भारत में भी इस मुद्दे पर काफी संघर्ष हुआ है, जबकि प्रतीक-चिह्न की सुरक्षा के सिद्धांतों का उल्लेख, 1960 के जेनेवा सम्मेलन अधिनियम में स्पष्ट रूप से किया गया है। इस क्षेत्र में भारत पहला देश है जिसने अधिनियम के माध्यम से इन विशिष्ट क्रियान्वयन के विधानों को अपनाया है। आई.आर.सी.एस. के महासचिव, आर.के. जैन ने कहा कि इस प्रतीक-चिह्न की सुरक्षा के लिए एक जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए, जो दुनियाभर में लाखों लोगों की पीड़ा को कम करने की दिशा में कार्य करता है।
आई.आर.सी.एस., 2020 में सेवा के अपने 100 वर्ष पूरे कर लेगा। इस उपलब्धि को उत्सव के रूप में मनाने के लिए आर. के. जैन ने शतक के उत्सव के प्रतीक का अनावरण किया, जिसे भारत भर में प्रतीकों के डिजाइन प्रतियोगिता के माध्यम से चुना गया – जिसकी रचना कंचारापु राजेश, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के एक छात्र ने की है।