नई दिल्ली में इंडियन जर्नल ऑफ लॉ एंड इंटरनेशनल अफेयर्स (IJLIA) के सहयोग से इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ (ISIL) द्वारा आयोजित एक हालिया अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ने अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) की प्रासंगिकता और भविष्य पर चर्चा करने के लिए सही मंच प्रदान किया है। 2019 में जिनेवा कन्वेंशन की 70वीं वर्षगांठ पर, यह दूसरा सम्मेलन था जिसने कानूनी बिरादरी और मानवीय दुनिया के सामने एक स्थापित कानूनी ढांचे, जिनेवा कन्वेंशन (जीसी) की व्याख्या में चुनौतियों पर चर्चा की। पैनल चर्चा, “जीसी @ 70: संभावनाएं और चुनौतियां” ने विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। मेजर जनरल (प्रो) नीलेन्द्र कुमार ने भारत में जीसी की फ्रेमिंग को लेकर हुई व्यापक चर्चाओं में भारत की भूमिका के बारे में बात की,  लेकिन 1949 के जीसी की अभिपुष्टि के शुरुआती उत्साह के बाद, सम्मेलनों की “अत्यधिक यूरोप-अभिकेन्द्रित” भाषा को प्रमुख कारणों में से एक माना गया कि क्‍यों भारत ने बाद के अतिरिक्त प्रोटोकॉल (APs) की अभिपुष्टि का फॉलो-अप नहीं किया। उन्होंने कहा कि यूरोप से पश्चिम एशिया तक संघर्ष के केंद्र में बदलाव एक संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय संधियों को भी विकसित होना चाहिए। जामिया मिलिया इस्लामिया में नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन के निदेशक प्रो (डॉ) तसनीम मीनाई ने कॉमन ऑर्टिकल 3 के महत्व पर प्रकाश डाला क्‍योंकि नॉन इंटरनेशनल आर्म्‍ड कॉन्फ्लिक्‍ट (NIAC) की स्थिति दुनिया भर में बार-बार उत्‍पन्‍न होती है। चूंकि संघर्ष में भाग लेने वाले पक्ष अधिक स्थानीय हो जाते हैं, इसलिए प्रचलित अस्पष्टता को फिर से समझना महत्वपूर्ण हो गया है जो पक्षकारों को एनआईएसी में बंदियों की सुरक्षा को सीमित करने की अनुमति देता है। पूर्व विंग कमांडर (डॉ) यूसी झा ने राज्यों को उनके राष्ट्रीय विधायिका और सैन्य मैनुअल के भीतर IHL सिद्धांतों को आत्‍मसात करने और शामिल करने की सराहना की। हालांकि, उन्होंने कानूनी डोमेन में विकास को प्रतिबिंबित करने के लिए मैनुअल को संशोधित करने की तत्काल आवश्यकता को दोहराया। दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ­ श्रीनिवास बूरा, ने सार्वभौमिक अनुसमर्थन हासिल करने के लिए जीसी को एक “असाधारण उपलब्धि” के रूप में उल्‍लेखित किया कि कैसे इसकी अपर्याप्तता को तीन चरणों के निर्माण के साथ 1977 में एक निश्चित सीमा तक समाप्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि चुनौती, भविष्य में इन मौजूदा प्राविधानों के संघर्ष और उनके साधनों और तरीकों के रूप में मजबूत व्याख्या बनी हुई है। आईसीआरसी नई दिल्ली में IHL विभाग की प्रमुख डॉ अनुराधा साईंबाबा ने डॉ श्रीनिवास की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नॉन-स्‍टेट आर्म्‍ड ग्रुप्‍स (NSAGs) की तेजी  से बदलती संरचनाएं मानवीय कार्यकर्ताओं के लिए प्रभावित आबादी तक पहुंचने में एक चुनौती पेश करती हैं, जिसके बारे में लंबी चर्चा की आवश्‍यकता है। यह देखते हुए कि आईसीआरसी का जनादेश प्रकृति में अत्‍यंत मानवीय है, इसलिए, आईएचएल उल्लंघन का जवाब देने की जिम्मेदारी राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर संयुक्त रूप से रहती है। इन चर्चाओं ने दर्शकों से दिलचस्प समीक्षा प्राप्‍त की है, जिसमें पूरे भारत और पड़ोसी देशों के छात्र और शिक्षाविद शामिल थे।