2019 को जेनेवा कन्वेंशंस 1949 की 70वीं सालगिरह के रूप में मनाया जा रहा है। विश्व की एकमात्र सार्वभौमिक पहचान वाली यह संधि, इस बात की संस्वीकृति प्रदान करती है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून(आईएचएल) सच्चे अर्थों में निष्पक्ष है। आईएचएल का लक्ष्य है, सशस्त्र संघर्ष के समय आम नागरिकों की पीड़ा को सीमित करना और उनलोगों का सम्मान वापस दिलाना, जो अब संघर्ष के पक्षकार नहीं हैं। वर्तमान समय में आईसीआरसी दुनिया भर के 80 से अधिक देशों में कार्य करता है, लेकिन आज यह उन परिस्थितियों के बीच काम करता है, जो आज से 20 वर्ष पहले की परिस्थितियों से काफी अलग हैं। चूंकि संघर्ष की प्रकृति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और नवीन तकनीक तेजी से अपनी पैठ बनाती जा रही है, आईसीआरसी वैसे लोगों की सुरक्षा के लिए, जो सबसे अधिक संवेदनशील हैं, जेनेवा सम्मेलनों की प्रासंगिकता और उपयोज्यता को प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता और जरुरत को भली-भाँति समझता है। इसी विचार के साथ, विवेकानन्द इंस्टीच्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज (वीआईपीएस) और आईसीआरसी ने 19 जनवरी 2019 को 70वीं वर्षगाँठ मनाते हुए, आईएचएल पर एक राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बोलने वाले वक्ताओं में, राजीव शकधर, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; पी के मल्होत्रा, पूर्व सचिव, विधि मंत्रालय; बी टी कौल, अध्यक्ष, विवेकानन्द स्कूल ऑफ लॉ एंड लीगल स्टडीज और डॉ अनुराधा साईबाबा, कानूनी सलाहकार, आईसीआरसी प्रमुख थे। अपने उद्घाटन संबोधन में मानवता के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए, डॉ साईबाबा ने कहा कि सभी हितधारकों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए मिलजुलकर काम करना चाहिए, जो और अधिक मानव हितकारी हो और जिसकी पहुँच अति-संवेदनशील लोगों तक हो। युवा पीढ़ी के बीच आईएचएल की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए, शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए आईसीआरसी की प्रशंसा करते हुए, पी के मल्होत्रा ने कहा कि सभी देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय संधियों को घरेलु कानूनों और विधानों में समाहित किया जाए। कार्यान्वयन के विचार पर जोर डालते हुए बी टी कौल ने कहा कि भविष्य की ओर देखते हुए, इन सम्मेलनों को कृत्रिम खुफिया जानकारी (एआई) पर आधारित हथियार प्रणालियों के साथ सामंजस्य स्थापित करना पड़ेगा, क्योंकि पारंपरिक युद्ध का स्वरूप अब पूरी तरह से बदल चुका है। जस्टिस शेकधर ने बताया कि सशस्त्र संघर्ष की सार्वभौमिक परिभाषा के अभाव का असर यह पड़ा है कि दुनिया भर के राज्यों के द्वारा ऐसी परिस्थितियों को “कानून और व्यवस्था” की परिस्थितियों का नाम दे दिया जाता है। हिंदु महाकाव्यों, रामायण और महाभारत का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि इन साहित्यों में भी बंधन के सिद्धांतों के बारे में लिखा गया है, जिसकी अवहेलना हजारों आम नागरिकों की पीड़ा का कारण बन गए। यह सत्य है कि सभी धर्म संघर्षों के नकारात्मक परिणितियों के बारे में बताते हैं, तथापि युद्ध होते ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि, “हमें शाति के विचार पर कार्य करने की आवश्यकता है,” यदि हम एक शांतिपूर्ण समाज चाहते हैं। सम्मेलन में संपूर्ण भारत से आए तीस से अधिक विद्वान सम्मिलित हुए, जिन्होंने वक्ताओं के द्वारा सुझाए गए विषयों को काफी विस्तार से वर्णित किया।