सेन्टर फॉर युनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग (सीयूएनपीके) की साझेदारी में, रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति(आईसीआरसी) ने 17-21 दिसंबर तक नई दिल्ली में, “यूएन की शांति स्थापना की कार्यवाहियों में आम नागरिकों की समेकित सुरक्षा” विषय पर, एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यशाला, जिसने 23 देशों के सेना के अधिकारियों को आकर्षित किया, शांति स्थापना की अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाहियों के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (आईएचएल), आम नागरिकों की सुरक्षा, संघर्ष से संबंधित यौन हिंसा(सी.आर.एस.वी.) तथा बच्चों की सुरक्षा जैसे मुद्दों के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित थी। अपने स्वागत संबोधन में, लेफ्टीनेंट जनरल सरनजीत सिंह, वाई एस एम डी जी एस डी, भारतीय सेना ने सेना के अधिकारियों का स्वागत किया और यह आशा व्यक्त की कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम उनके अनुभव को और अधिक बढ़ाएगा तथा साथ ही शांति स्थापना की उनकी योग्यताओं को और मुखर करेगा।

भारतीय सेना के लेफ्टीनेंट जनरल सरनजीत सिंह ने अधिकारियों का स्वागत किया और यह आशा व्यक्त की कि यह प्रशिक्षण, शांति स्थापना की उनकी योग्यताओं को और मुखर करेगा।.

 

जेरेमी इंग्लैंड, क्षेत्रीय प्रतिनिधिदल के प्रधान, आईसीआरसी ने अपने शुरुआती वक्तव्य में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के लगातार बदलते जा रहे स्वरूप, शांति स्थापना के लिए नई-नई चुनौतियाँ पेश कर रहे हैं। आगे उन्होंने बताया कि कठिनाईयों के बावजूद, शांति सैनिकों को आईएचएल के सभी पहलुओं का अनुपालन करने की आज्ञा दी गई है। उन्होंने शांति स्थापना में भारत की भूमिका की बहुत प्रशंसा की और कहा : “भारत उन मुख्य तीन देशों में से एक है, जो अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाहियों में महिला शांति सैनिकों सहित, अपनी टुकड़ियाँ भेजकर अभूतपूर्व योगदान दे रहे हैं।“ ऐसे कार्यवाहियों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए, श्री इंग्लैंड ने कहा कि लगभग 300,000 बाल सिपाहियों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजने की बजाय गुलामी, यौन कार्यों तथा वास्तविक लड़ाई में जबरदस्ती धकेल दिया जाता है।

जेरेमी इंग्लैंड, क्षेत्रीय प्रतिनिधिदल के प्रधान, आईसीआरसी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के लगातार बदलते जा रहे स्वरूप, शांति स्थापना के लिए नई-नई चुनौतियाँ पेश कर रहे हैं।

लेफ्टीनेंट जनरल आई एस घुमान, ए वी एस एम, डी सी डी ए एस (आईएसएवंटी), भारतीय सेना ने अपने प्रारंभिक संबोधन में कहा कि ऐसी संभावना लगती है कि विश्व आने वाले वर्षों में, और अधिक लड़ाईयों और संघर्षों का साक्षी बनेगा। उन्होंने इन बात पर बल दिया कि शांति सैनिकों को कठिन परिस्थितियों, दुर्गम इलाकों और स्थानीय सहयोग के अभाव के कारण, कठिन चुनौती का सामना करना पड़ता है। “यह विभेद करना मुश्किल होता है कि कौन आम नागरिक है और कौन योद्धा है। ऐसे संघर्षों में मानव ढाल का उपयोग हमेशा से एक चुनौती रही है।“


भारतीय सेना के लेफ्टीनेंट जनरल आई.एस. घुमान ने कहा कि शांति सैनिकों को कठिन परिस्थितियों, दुर्गम इलाकों और स्थानीय सहयोग के अभाव के कारण, कठिन चुनौती का सामना करना पड़ता है।

आम नागरिकों की सुरक्षा की आवश्यकता को विस्तार से बताते हुए, पियरे जेंटाइल, सुरक्षा प्रभाग के प्रमुख, आईसीआरसी ने कहा कि आम नागरिकों की सुरक्षा, केवल शांति सैनिकों की भूमिका नहीं है, “यह हर किसी के लिए चिंता का विषय है – राजनीतिक पार्टियों, सैन्य बलों, न्यायिक शक्तियों, सिविल सोयायटी के कार्यकर्ताओं तथा मानवीय कार्यकर्ताओं, सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी।“ एक पूरा दिन संघर्ष से संबंधित यौन हिंसा(सीआरएसवी) को समर्पित था, जिसमें पैनल के वार्ताकारों ने लगातार इस तथ्य को उजागर किया कि सीआरएसवी, प्रभावित समुदाय के लिए लंबे समय तक होने वाली पीड़ा, जैसे शारीरिक समस्याएँ, मनोवैज्ञानिक आघात तथा सामाजिक आर्थिक कठिनाईयों का कारण बनता है। भारतीय सेना की लेफ्टिनेंट कर्नल अपर्णा बिसेन ने कहा कि शांति सैनिकों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है कि वे अतिसंवेदनशील समूहों को अपने ध्यान में रखें और उन्हें यह सीखना चाहिए कि किसी भुक्तभोगी और अपराधी के बीच, कैसे विभेद किया जाना चाहिए।

पियरे जेंटाइल, सुरक्षा प्रभाग के प्रमुख, आईसीआरसी ने कहा कि आम नागरिकों की सुरक्षा, हर किसी के लिए चिंता का विषय है – राजनीतिक पार्टियों, सेन्य बलों, न्यायिक शक्तियों, सिविल सोयायटी के कार्यकर्ताओं तथा मानवीय कार्यकर्ताओं।

यौन हमले की शिकार एक भुक्तभोगी के आघात का वर्णन करते हुए, जेंटाइल ने कहा कि वे अदृश्य होते हैं, क्योंकि ऐसे लोग यौन अपराधों की रिपोर्ट ही नहीं करते हैं। पुरुष भुक्तभोगी के मामले में, यौन अपराध की रिपोर्ट करने की संभावना और भी कम है, क्योंकि उनकी मर्दानगी पर ही सवाल उठाया जाता है। लेकिन आईएचएल सभी पर समान रूप से लागू होता है। यह सशस्त्र संघर्ष में यौन हिंसा के विरुद्ध पुरुषों और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है, “जेंटाइल ने बताया। बाल सुरक्षा के सत्र में, प्रशिक्षणार्थियों ने इस तथ्य को प्रमुखता से उठाया कि किसी सशस्त्र संघर्ष में बच्चे, महिलाएँ और बुजुर्ग ही सबसे अधिक हिंसा झेलते हैं। भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल मनोज कुमार ने कहा कि यदि शांति सैनिकों को उस क्षेत्र की परिस्थितियों की समझ हो जाती है, तो वे बच्चों की स्थिति में सुधार के लिए स्थानीय समुदाय और सरकार के साथ मिलकर काम कर सकते हैं। आगे उन्होंने बताया : “बच्चे विशेष अधिकारों के द्वारा सुरक्षित हैं। आईएचएल के अतिरिक्त, बाल सुरक्षा पर अनेक वैश्विक समझौते हुए हैं।“ उन्होंने प्रतिनिधियों के दल को यह याद दिलाया कि “बाल श्रम, यौन शोषण तथा बच्चों को अपशब्द कहना, जीरो टॉलरेंस(शून्य असहिष्णुता) की श्रेणी में आते हैं।“ सुप्रिया राव, कानूनी सलाहकार, आईसीआरसी नई दिल्ली ने अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा आईएचएल के उन प्रावधानों का एक परिदृश्य प्रस्तुत किया, जो ड्यूटी पर मौजूद शांति सैनिकों पर लागू होते हैं। बच्चे जिन परिस्थितियों में सशस्त्र संघर्ष में सामिल होते हैं, उन परिस्थितियों पर बल देते हुए, उन्होंने कहा : “बच्चों के सशस्त्र संघर्ष में शामिल होने के मुख्य कारणों में से एक है उनकी खुद की उत्तरजीविता सुनिश्चित करना। इसलिए उन्हें भुक्तभोगी के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक अपराधी के रूप में।“उन्होंने आगे बताया कि आईसीआरसी, संबंधित पक्षकारों के साथ मिलकर सशस्त्र संघर्ष के क्षेत्रों में शिक्षा के महत्व के प्रति, जागरूकता बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। भारतीय सेना के ब्रिगेडियर ए सेनगुप्ता ने उन चुनौतियों के बारे में बताया, जिससे सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में शांति सैनिकों को जूझना पड़ता है और आईसीआरसी को समुचित सलाह देने और अपने विशाल अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों को साझा करने के लिए धन्यवाद दिया। य्वेस हेलर, क्षेत्रीय प्रतिनिधिदल के उप प्रधान, आईसीआरसी ने कहा कि यह कार्यशाला, शांति स्थापना में शामिल भ्रम की स्थितियाँ तथा चुनौतियों और सशस्त्र संघर्ष के दौरान, आम नागरिकों की आबादी की सुरक्षा की बढ़ती जरुरतों तथा हिंसा की अन्य परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है। विभिन्न वैश्विक कानूनों के महत्व पर जोर डालते हुए, उन्होंने आगे कहा कि चूंकि कुछ परिस्थितियों में शांति सैनिकों को बल प्रयोग करना पड़ता है, अतः उन्हें आईएचएल या अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के पहलुओं के अंतर्गत, आम नागरिकों की सुरक्षा पर लागू होने वाला कानूनी ढाँचा क्या है, इससे पूरी तरह से अवगत होना चाहिए और यह सम्मेलन, इसी शिक्षा को प्रसारित करना चाहता है।