कोलंबो में 11 से 14 जून के बीच अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (आईएचएल) पर आयोजित किए गए ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स (टीओटी)  पाठ्यक्रम के  प्रशिक्षण कार्यक्रम में श्रीलंका सेना के 26  प्रशिक्षकों  ने भाग लिया। यह प्रशिक्षार्थी श्रीलंका की सेना में लेफ्टिनेंट से लेकर मेजर पद पर काम कर रहे अधिकारियों में से चुने गए थे। इस कार्यक्रम का आयोजन इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (आईसीआरसी) के क्षेत्रीय डेलीगेशन ने  श्रीलंका के डिपार्टमेंट ऑफ ओवरसीज ऑपरेशंस  (डीओओ) निदेशालय के साथ मिलकर किया था।

कोलंबो में स्थित यह  निदेशालय हाल ही में 12 अप्रैल को खोला गया है। यह निदेशालय शांति अभियानों में भाग लेने वाली श्रीलंका की सेना के प्रदर्शन तथा क्षमता को सुधारने के उद्देश्य से खोला गया है। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में श्रीलंका सेना के कमांडर ने आईसीआरसी के साथ हुई एक बातचीत में यह इच्छा जाहिर की थी कि  निदेशालय और आईसीआरसी डेलीगेशन इस दिशा में मिलकर काम करें।

उद्घाटन समारोह के अवसर पर श्रीलंका सेना के जनरल स्टाफ के महानिदेशक मेजर जनरल धननजीत करुणारत्ने और डीओओ महानिदेशक व  डिपार्टमेंट ऑफ ओवरसीज ऑपरेशंस के महानिदेशक मेजर जनरल मर्विन परेरा ने आईसीआरसी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही मदद के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने  युद्ध कार्यों के दौरान दूसरे पक्ष के प्रति अपनाए जाने वाले व्यवहार पर आईसीआरसी के साथ हुए विचार-विमर्श की महत्ता पर भी आईसीआरसी को धन्यवाद अदा किया।

प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि श्रीलंका की सेना के कुछ चुने हुए प्रशिक्षकों को  आईसीआरसी द्वारा अपनाए जाने वाले  नियमों और गतिविधियों से परिचित कराया जाए ताकि अपनी इस नई भूमिका को निभाने के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून की जरूरी जानकारी हो और अपने देश या बाहर शांति अभियानों में हिस्सा लेने के दौरान सेना उपलब्ध तरीकों का सही तथा  बेहतर इस्तेमाल कर सके।

चार दिन के इस पाठ्यक्रम में  प्रेजेंटेशन, विचार संगोष्ठियों और व्यावहारिक अभ्यास  का समावेश किया गया था। पाठ्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून से जुड़े हुए तमाम विषयों पर चर्चा की गई। इनमें सेक्स हिंसा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा उपलब्धता जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल थे।

प्रतिभागियों के लिए यह अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून से जुड़ी बातों को सीखने-समझने, विचार-विमर्श करने और अपनी जिज्ञासाएं या प्रश्न पूछने का एक सुनहरा अवसर रहा। इन प्रशिक्षकों को इस पाठ्यक्रम के आयोजन से यह भी समझने का मौका मिला कि आधुनिक दौर  में सशस्त्र झड़पों और उनकी  पेचीदगियों को ध्यान में रखते हुए, ऐसी  स्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के नियमों और उसूलों को किस तरह से लागू किया जाए।

इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस के श्रीलंका के डेलीगेशन प्रमुख जेराड पेट्रिगनेट ने प्रतिभागियों के स्वागत के दौरान दिए गए भाषण में कहा कि यह पाठ्यक्रम आईसीआरसी और डिपार्टमेंट ऑफ ऑपरेशंस के बीच  शुरू हुई नई साझेदारी के विकास की दिशा में पहले कदम का परिचायक है। इसका व्यापक उद्देश्य शांति अभियानों में हिस्सा लेने वाले श्रीलंका की सेना के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने तथा अभ्यास कराने के तरीकों में और सुधार करना है।

उन्होंने बताया कि इससे  सेना को अपनी नीतियों, कार्यक्रमों और नियम पुस्तिकाओं  के अलावा सैन्य कार्यवाही की स्थिति में सेना द्वारा दूसरे पक्ष के प्रति अपनाए जाने वाले तरीकों और प्रक्रियाओं के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के साथ पूरी तरह समन्वय और तालमेल बिठाने और लागू करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अलावा सैन्य अभियानों के दौरान निर्णय लेने की प्रक्रिया और क्षमता में सुधार की दिशा में भी यह प्रशिक्षण काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।

श्रीलंका 1960 से ही शांति प्रयासों के अभियानों में अपना योगदान दे रहा है। अब तक श्रीलंका सेना के 18,509 सदस्यों ने ऐसे  शांति अभियानों में हिस्सा लिया है। इनमें सेना के पर्यवेक्षक, स्टाफ  के अधिकारियों और उनके सहायकों की सेवाएं भी शामिल हैं।  इस समय श्रीलंका की सेना के सदस्य लेबनान, दक्षिणी सूडान, माली और केंद्रीय अफ्रीकन गणराज्य  में तैनाती पर हैं।