प्रतिभा की धनी हैं महाराष्ट्र की निशा गुप्ता। कई सारे हुनर हैं उनके पास । ना केवल वो टैटू बनाने वाली एक प्रशिक्षित पेशेवर कलाकार हैं बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर की पारंगत पैरास्विमिंग खिलाड़ी भी हैं। इसके अलावा वो व्हीलचेयर बास्केटबॉल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं। इस लेख में निशा अपने उस अनुभव को साझा कर रहीं हैं जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी।  सिर और रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगने के बाद कड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए निशा ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वो कई लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत और मिसाल है। ज़िंदगी की एक नई पारी शुरू करने का यह अनुभव वो इस लेख में सबके साथ बाँट रही हैं।

मुंबई जैसे महानगर में बड़े होने के नाते गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार मुझे हमेशा से रहता था। इन्हे बिताने मुंबई से बाहर जाने का एक ख़ास आकर्षण रहा है। बचपन में हम यह छुट्टियां मनाने वाराणसी जाते थे। वाराणसी ना केवल हमारा पैतृक घर है बल्कि मेरा जन्म स्थान भी है।

बचपन से ही में काफी जोखिम स्वभाव की रही हूँ और इसलिए जब 2004 में कॉलेज की छुट्टियों के दौरान  मैं वहां गई थी तब एक दिन मैंने पेड़ से आम तोड़ने का फैसला किया। मुझे आज भी वो दिन अच्छी तरह याद है क्योंकि  उस दिन हुई एक अप्रत्याशित घटना ने मेरी जिंदगी की दशा और दिशा हमेशा के लिए बदल दीI

पेड़ से नीचे गिरने के कारण मेरे सिर और रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आई। मेरे शरीर से बुरी तरह खून बह रहा था और कमर से नीचे के हिस्से में किसी प्रकार की हरकत नही थी और मुझे उस हिस्से में कुछ भी महसूस नही हो रहा था। मुझे शीघ्र ही पास के अस्पताल ले जाया गया, जो वहां से लगभग दो घंटे की दूरी पर था। मेरे सिर पर टांके लगे और साथ ही मुझे यह भी बताया गया कि अब मैं जिंदगी भर चल नहीं पाऊंगी।  मुझे यह जानकारी भी दी गई कि मेरी कमर के नीचे का शरीर लकवाग्रस्त हो गया है और उसकी गतिविधियों पर मेरा नियंत्रण नहीं रहेगा। मैं और मेरा पूरा परिवार इस सदमे से जूझ रहे थे और चिंतित थे कि हम इस स्थिति का सामना किस तरह करेंगेI

वाराणसी से मुंबई तक की वो  24 घंटे की ट्रेन  यात्रा ना केवल काफी दुखद और लंबी लगी बल्कि उसके बाद का समय भी। यह सर्जरी और लगातार होने वाले उपचार का एक लंबा दौर था। पुनर्स्थापना और फिज़ियोथेरेपी  की मदद से मैंने बैठना और खड़ा होना सीख लिया। खड़े होने के लिए मैं कैलिपर्स ( बैसाखी) की मदद लेती थी और उसका ठीक से इस्तेमाल करना भी सीख लिया।  इसके बावजूद स्थिति यह थी कि तीन महीने बीतने के बाद भी मेरी हालत में कोई खास सुधार नहीं आया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी और सदमे के कारण निराशा और अवसाद का सामना कर रही थी। मैंने जीने की इच्छा पूर्ण रूप से खो दी थी।

अगले चार साल का ज़्यादातर समय मैंने बिस्तर पर सोते हुए या टीवी देखते हुए गुज़ारा। मेरे अंदर आशा की किरण तभी पैदा हुई जब मेरा परिचय नीना फाउंडेशन से हुआ।

मेरा सामना, मुलाकात और बातचीत पहली बार ऐसे बहुत से व्यक्तियों से हुई, जो कमर के नीचे के आंशिक या पूरे लकवे से ग्रस्त थे।  मुझे एहसास हुआ कि मैं अकेली नहीं हूं और  यह सभी लोग मेरे प्रेरणास्रोत बने। उन सब के साथ होने वाली बातचीत और  तमाम अनुभवों को मैंने अपने परिवार के साथ बांटना शुरू किया। यह मेरे एक नए जीवन की शुरुआत थी।  मैंने धीरे-धीरे घर से काम करना शुरू किया। सबसे पहले मैंने डाटा दर्ज करने वाली एक नौकरी शुरू की।

बचपन से ही मेरा सपना एक टैटू कलाकार बनने का था। मेरे बचपन की दोस्त कविता ने मुझे  टैटू बनाने वाले एक आर्टिस्ट्स से मिलाया, जिसको मुझे मेरे ही घर आकर सिखाने में कोई परेशानी नहीं थी। यह मेरी जिंदगी बदलने की शुरुआत थी क्योंकि अब मैं अपने बचपन के सपने, शौक या इच्छा को पूरा करने की दिशा में अग्रसर थी।

धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास बढ़ना  शुरू हुआ और मैंने कई तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया।  मैं दोस्तों और परिवार के साथ नियमित तौर पर काफी बार बाहर जाने लगी हालांकि ऐसी जगहें ढूंढ़ना ज़रूर एक कठिन चुनौती थी, जहां मुझे ज़्यादा दिक्कतों का सामना ना करना पड़े।

मैंने सबसे पहले मुंबई मैराथन में भाग लिया। फिर व्हीलचेयर डांसिंग, पैरास्विमिंग और पैराबैडमिंटन सीखना और खेलना शुरू कर दिया। मैंने 2013 में आयोजित हुई  पहली  मिस व्हीलचेयर इंडिया प्रतियोगिता में भी भाग लियाI

अब कोई भी स्थिति  मुझे अपना जुनून और शौक पूरा करने में रुकावट नहीं बन सकती थी।  2014 से मैंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की पैरास्विमिंग प्रतियोगिताओं  में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। शुरू में मेरे परिवार वाले ज्यादा उत्साहित नहीं थे लेकिन अगले दो  सालों के दौरान  मैंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में कई स्वर्ण और रजत पदक हासिल किए।

दिसंबर 2015 में मैंने  इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (आईसीआरसी)  और व्हीलचेयर बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूबीएफआई) द्वारा दिल्ली में आयोजित दूसरी राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसमें हमारी टीम ने कांस्य पदक जीता।

इसके बाद मैं भारत की उस टीम का हिस्सा रही, जिसने इंडोनेशिय (बाली ) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्रतियोगिता में कांस्य पदक हासिल किया। किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की व्हीलचेयर बास्केटबॉल  प्रतियोगिता में भारतीय टीम के भाग लेने का यह पहला मौका था। इस टूर्नामेंट के दौरान मुझे पांच सर्वश्रेष्ठ उभरते हुए  प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में शुमार किया गया।

जिंदगी और खेलों के प्रति मेरा जुनून आज नई बुलंदियों पर है। यह नई-नई ऊंचाइयां छूने और हासिल करने को तैयार है।

आज मैं यह बात गर्व से कह सकती हूं कि कमर के नीचे  लकवाग्रस्त होने के बावजूद मैं एक पूरी तरह आत्मनिर्भर भारतीय नारी हूं, जो यह विश्वास रखती है कि अगर वो चाहे तो हर उस सपने  को हासिल कर सकती है, जिसकी उसने कल्पना की हो।

निशा भारत भर से चुने गए उन 12 प्रतिभागियों में शामिल हैं, जिन्होंने आईसीआरसी, नई दिल्ली के क्षेत्रीय डेलीगेशन और मोटिवेशन नामक संस्था द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कैंप में भाग लिया। व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए यह पांच दिवसीय कैंप दिल्ली में आयोजित किया गया।