मानवाधिकार परिषद् में अंतर्राष्ट्रीय कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस (आई सी आर सी ) के अध्यक्ष का संबोधन
सर्वराष्ट्रीय मानव अधिकार घोषणापत्र की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर मैं स्वतंत्रता, समानता और स्वाभिमान के प्रति कर्मठता से समर्पित रवैया रखने और निरंतर अथक प्रयासों के लिए मानवाधिकार परिषद् और उसके उच्चायुक्त द्वारा किये जा रहे कार्यकलापों के प्रति अपना आभार और सम्मान व्यक्त करता हूँ ।
वर्तमान समय में हम बहुत गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हम लगातार दिल दहला देने वाली घटनाओं को देख रहे हैं और यह हृदयविदारक दृश्य दर्शाते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का कितने व्यापक पैमाने पर और कितना गंभीर रूप से उल्लंघन हो रहा है।
युद्ध वाली स्थितियों में आज विश्व भर में सभी मानवीय नियमों को ताक पर रख कर नागरिकों को सीधा निशाना बनाया जा रहा है। काफी बड़ी संख्या में नागरिक रिहाइशी इलाकों और अपने पुश्तैनी इलाकों तथा घरों को छोड़ कर पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं. वो बड़ी संख्या में विस्थापन के शिकार भी हो रहे हैं और कई लोग हिरासत में नज़रबंद हो कर अमानवीय हालातों में बंदियों जैसा जीवन बिताने पर भी मजबूर हैं।
इन अत्याचारों को ना रोक पाने की स्थिति में उत्पन्न हुए हालातों का प्रभावपूर्ण तरीके से सामना करना और इनसे उबर पाना काफी मुश्किल और भारी चुनौतियां हैं। इनके समाधान बहुआयामी और काफी जटिल हैं लेकिन संगठन और व्यवस्था के रूप में इनसे निबटने के लिए हमारे पास कई साधन उपलब्ध हैं। ज़रूरत उनके सही समय पर और उचित इस्तेमाल की है।
आज मैं सभी सदस्य देशों से अपील करता हूँ कि वो अपने दायित्वों को निभाने और पूरा करने में सक्रियता और गंभीरता से भूमिका निभाएं। अपने देश समेत युद्ध में फंसे देशों के नागरिकों की सुरक्षा की मूल जिम्मेदारी उनकी ही है। नागरिकों की जान और गैरत की हिफाज़त और सम्मान के मौलिक अधिकार को पुनर्जीवित करने में अपनी भूमिका निभाना इन सदस्य देशों की नैतिक जिम्मेदारी है। यह मानवता के आधार पर तय मूलभूत सिद्धांतों के नाते सभी नागरिकों का हक़ बनता है।
यह स्पष्ट है कि लोगों की पीड़ा को समाप्त करने में हमें सीमित सफलता ही हासिल हुई है। हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में लोगों की ज़रूरतों का ध्यान रखने के लिए काफी व्यापक पैमाने पर एहतियाती कदम उठाना ज़रूरी है। इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि सभी देश अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान और पालन करें। गौरतलब है कि दुनिया के सभी देश इस कानून का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह तय किए गए सार्वभौमिक मानवीय कानून ही अत्याचारों और नृशंसता के खिलाफ हमारा कवच हैं:
० नागरिक कभी भी युद्ध और हमले का लक्ष्य नहीं होने चाहिए।
० बलात्कार, यातनाएं और हत्याएं किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं हैं।
० घायलों और बीमारों का इलाज कर रहे अस्पतालों को निशाना नहीं बनाना चाहिए।
० सहायता और मदद कार्यों में जुटे व्यक्तियों का अपहरण और हत्या स्वीकार्य नहीं है।
० नागरिकों को मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
० भारी नुकसान पहुँचाने वाले अवैध हथियारों का इस्तेमाल पूरी तरह वर्जित है।
० सहायता कार्यों में जुटे लोगों को ज़रुरतमंदों तक पहुँचने से ना रोका जाए।
० सीधे तौर पर युद्ध और आक्रमण की चपेट में आ रहे नागरिकों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचने का मौका और समय दिया जाए।
कानून का उल्लंघन करने वालों पर तो हमें कड़ी नजर रखनी ही पड़ेगी पर इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि कानून का सम्मान करने वाले सकारात्मक उदाहरणों को पहचान कर उन्हें लोगों के सामने मिसाल के तौर पर पेश करते हुए अपनाने पर बल दिया जाए। सच तो यह है कि युद्ध में शामिल पक्षों के व्यवहार और गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए कानून एक बहुत ही व्यावहारिक और प्रभावपूर्ण साधन या तरीका है। यह आपातकालीन सैन्य और मानवीय परिस्थितियों में संशय के समय उचित मार्गदर्शन प्रदान करने वाला सक्षम साधन है। यह सेनाओं को अपनी छवि और सम्मान बचाए और बनाए रखने में भी काफी मददगार है। युद्ध की विकट परिस्थितियों में यह कानून ही उन्हें सामान्य पर ज़रूरी शिष्टता बरकरार रखने के लिए प्रेरित करता है.
कानून हमेशा से युद्ध में उलझे हुए पक्षों को आमने-सामने बिठा कर अपने हितों की सुरक्षा के लिए बातचीत करने का मूल फ्रेमवर्क या रास्ता और उपाय प्रदान करता है। ऐसे निदान की तलाश, जो दोनों ही पक्षों के लिए फायदे का सौदा हो।
उदाहरण के तौर पर व्यक्ति रोधी सुरंगों जैसे प्राणघातक हथियारों के इस्तेमाल की सीमा तय करने वाली संधि को लागू करने पर रजामंदी हासिल करके हज़ारों जानों को बचाया जा सकता है। इसके अलावा स्थितियों सुधरने पर इन सुरंगों को निष्क्रिय करने जैसे अभियान व्यापक पैमाने पर चलाए जा सकते हैं. हमले की सीमा में आ रहे शहरों के नागरिकों को वहाँ से सुरक्षित निकलने का मौका प्रदान करना या कैदियों की अदला बदली का मार्ग निकालना भी ऐसे ही कुछ कदम हैं.
कानूनी तौर पर ऐसे प्रावधान उपलब्ध हैं कि सबके प्रति मानवीयता का रवैया अख्तियार किया जा सके, चाहे फिर वो समूहों की बात हो या व्यक्तियों की. कानून में यातनाओं को कम करने, कट्टरता और नाराज़गी को दूर करने और मानवीय मूल्यों को पालन करने संबंधी प्रावधान भी उपलब्ध हैं. मसलन युद्ध क्षेत्र में लड़ने वाले विदेशी सैनिकों के योगदान को ज़ाहिर करना भी सुनिश्चित किया गया है ताकि उनके प्रयास गुमनाम ना रहे और लोगों तक इन सैनिकों की खोजखबर पहुँचती रहे.
आई सी आर सी को इस कानून की मदद से युद्धों के दौरान छिन्नभिन्न हुए समुदायों और समाजों की दिक्कतों को सुलझाने में मदद मिलती है। लापता लोगों को खोजने और ढूँढ निकालने तथा परिवार के विस्थापित सदस्यों को मिलाने में भी यह कानून खासा मददगार है. अगर अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान किया जाए और नियमों का सही तरह से पालन किया जाए तो न केवल यह कारगर है बल्कि इसके काफी सकारात्मक और दूरगामी परिणाम और फायदे होते हैं। ख़ास तौर से पहचान और अनुपात तय करने के मामलों में।
दरअसल जब कायदे-कानूनों का नियमबद्ध तरीके से पालन किया जाए तो स्थितियां सुचारू बनी रह सकती है। इन कानूनों के तहत स्कूल, अस्पताल और बाज़ार जैसे मूलभूत संस्थान, सुविधाएं या ज़रूरतें हमले के दायरे से बाहर रहते हैं. बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित नहीं होती तथा जान और माल की हिफाज़त बनी रहती है। युद्ध की सरगर्मी शांत होने पर परिस्थितियों को सामान्य बनाने में इन सभी संस्थानों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है।
आई सी आर सी का मूल उद्देश्य एक ऐसा माहौल तैयार करना है, जिसमें मानव ज़िंदगी का सम्मान बरकरार रह सकें। मानवीय मूल्य ना केवल कायम रहें बल्कि उन्हें बचाया भी जा सके। इसके लिये हम कानून का सहारा लेते हैं और बातचीत के ज़रिए युद्व से जुड़े सभी पक्षों को इस कानून का सम्मान करने में अपनी ज़िम्मेदारी सक्षम ढंग से निभाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
देवियों और सज्जनों,
आज के ज़माने में युद्ध शायद ही कभी जीते जाते हैं। आम तौर पर आर-पार वाली स्थिति नहीं आ पाती और कोई एक पक्ष पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता। कई बार यह युद्ध दशकों लंबे समय तक चलते और खिंचते रहते है इसके परिणामस्वरूप शहर के शहर तबाह हो जाते है और सभी नागरिक व्यवस्थाएं बुरी तरह चरमरा जाती है।
हकीकत यह है कि जिन क्षेत्रों में सेना का इस्तेमाल शुरू हुआ हो या चल रहा हो, वहाँ अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून की अहमियत काफी महत्वपूर्ण है। यह कानून उन स्थितियों में काम करने के लिए एक निहायत सक्षम, कारगर और प्रभावपूर्ण साधन के तौर पर उपलब्ध है। उल्लेखनीय है कि जैसे-जैसे.युद्धों की समय सीमा बढ़ती जाती है, इस बात की ज़रूरत भी बढ़ती है कि शान्ति का दौर पुनर्स्थापित करने के लिए आवश्यक कदम काफी व्यापक पैमाने पर और गंभीरता से किए जाएँ।
कानून युद्धों से होने वाले नुकसान को कम करने, कट्टरतावादी ताकतों के विस्तार को रोकने, बदले की भावना से हो रहे युद्धों को ख़त्म करवाने और नागरिक आबादी पर हो रहे हमलों तथा तबाही को रोकने में बहुत अहम भूमिका निभा सकते हैं. गौरतलब है कि कानून शान्ति स्थापित करने के प्रयासों का आधार बनने में तो सक्षम भूमिका निभा ही सकते हैं, इन कोशिशों के लिए विभिन्न समुदायों की सहमति और स्वीकृति जुटाने का महत्वपूर्ण जरिया भी बन सकते हैं.
मैं सभी सदस्य देशों से सामूहिक और व्यक्तिगत तौर पर अपील करता हूँ कि वो आई सी आर सी द्वारा किए जा रहे प्रयासों के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं और अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के प्रयासों को चौगुना कर दें।
अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे आप सभी देवियों और सज्जनों के लिए यह केवल एक राजनैतिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत फ़ैसला भी है कि आप निरंकुश और व्यापक पैमाने पर होने वाली हिंसा के कुचक्र में ही फंसे रहते हैं या कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान और इस्तेमाल करते हैं.
मैं यह बात अच्छी तरह समझता हूँ कि वर्तमान समय की जटिल परिस्थितियों में कानून की व्याख्या चुनौतीपूर्ण है। इसके बावजूद लगातार बढ़ रहे अविश्वास, दंड माफ़ी और राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर वाले माहौल में कानून का सहारा रौशनी की एक ऐसी किरण है, जो इस गहरे काले अँधेरे के बीच से निकलने का व्यावहारिक तरीका या विकल्प साबित होने की कसौटी पर खरा उतरता है.