इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ रेड क्रॉस का इमरजेंसी रूम ट्रॉमा कोर्स यानी ई आर टी सी पाठ्यक्रम. यह एक ऐसा कोर्स है, जो ट्रॉमा से जूझ रहे लोगों की मदद और इलाज करने के लिए ख़ास तौर से तैयार किया गया है. इसे इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि सदमे, शॉक या ट्रॉमा (जिस भी नाम से इसे जानें) से होने वाली मौतों को कम किया जा सके और एक ख़ास अंतराल पर इसके बार-बार उभरने की स्थिति पर काबू पाया जा सके.
आई सी आर सी दुनिया भर के सभी देशों में इस (ई आर टी सी ) कौशल क्षमता विकास पाठ्यक्रम का आयोजन करता है ताकि आपातकालीन स्थितियों में ट्रॉमा से प्रभावित व्यक्तियों को जल्दी से जल्दी यानी समय रहते समुचित इलाज तथा सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें. आई सी आर सी के ई आर टी सी प्रशिक्षक रोहित श्रेष्ठ ने एक आयोजन के दौरान इस विषय पर अपने अनुभव बांटे. नेपाल में जन्मे रोहित श्रेष्ठ ने भारत में दिए जा रहे प्रशिक्षण पर अपनी राय से सबको अवगत कराया.
अचानक सदमा लगना दुनिया भर में मौतों की एक बहुत बड़ी वजह हैं. विश्व में हर साल लगभग 13 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मौत का शिकार होते हैं. घायल होने वालों की संख्या भी हर साल लगभग आठ करोड़ (सात करोड़ 82 लाख) रहती है. अगर इस दिशा में जल्दी ही ठोस और कारगर कदम ना उठाए गए तो एक अंदाज़े के अनुसार अगले 20 सालों में इसमें असामान्य रूप से बेतहाशा वृद्धि होगी. यह अनुमान ६५ % से ज्यादा की वृद्धि का है.
निम्न और मध्य आय वर्ग वाले देशों में इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. इस समय दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली 90 प्रतिशत मौतें इन्ही देशों में होती हैं. काम करने के अपने सबसे महत्वपूर्ण और उत्पादक सालों में यानी कि 15 से 40 साल की युवा उम्र में ही मरने और प्रभावित (विकलांगता ) होने वालों की संख्या इनमें सबसे ज्यादा है.
भारी सदमे की चपेट में आए लोगों को अगर समय पर और सही इलाज मिल सके तो मौतों और विकलांगता, दोनों की तादाद में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है. ट्रॉमा केयर ( सदमा देखभाल ) में विशेषज्ञता हासिल करने वाले डॉक्टर और विशेषज्ञ भूकंप जैसी उन प्राक्रतिक आपदा की स्थितियों में भी खासे मददगार साबित हो सकते हैं, जहां उन्हें भारी तादाद में प्रभावित लोगों या मरीजों की संख्या का सामना करना पड़ता है.
इस बात की पुख्ता जानकारी और सबूत उपलब्ध हैं कि अगर अस्पतालों के एमरजेंसी विभाग में ट्रॉमा मरीजों की देखभाल और इलाज के प्रबंधन के स्तरीय मानक तय कर लिए जाएँ तो मौत या विकलांगता के आंकड़ों में काफी सुधार आ सकता है.
ट्रॉमा मामलों के प्रबंधन पर इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस (आई सी आर सी ) की यह चिंता अब एक मिशन के रूप में इस बात का आधार और उद्देश्य बन रही है कि कैसे अस्पतालों के आपातकालीन विभाग में ट्रॉमा मामलों के प्रबंधन का स्तर सुधार कर मरीजों की जान बचाने के आंकडों को लगातार बेहतर किया जा सके.
आई सी आर सी की यह सोच उन इलाकों की हालत देख कर उपजी है, जहां हिंसक हथियारबंद झड़पों की स्थितियां होती हैं. हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में इसकी चपेट में आए व्यक्तियों को सहायता उपलब्ध कराने का मुहिम चलाने के दौरान ही आई सी आर सी ने ट्रॉमा केयर क्षेत्र में काम करने का इरादा बनाया.
इमरजेंसी विभाग ट्रॉमा प्रबंधन में आई सी आर सी ने जो विशेषज्ञता हासिल की है, वो युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में सालों की मेहनत का नतीजा है. युद्ध या हथियारों से घायल लोगों के इलाज का सालों का अनुभव और इन मरीजों के घावों की सर्जरी में हासिल विशेषज्ञता ही इस कोर्स का आधार बनी है. इमरजेंसी विभाग में रोजाना आने वाले ट्रॉमा मामलों को ध्यान में रख कर ही द इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस ने इस इमरजेंसी रूम ट्रॉमा कोर्स ( ई आर टी सी ) को ख़ास तौर से तैयार किया है.
इसमें प्रैक्टिकल ट्रेनिंग तथा वास्तविक तौर पर सामने आने वाली स्थितियों की नक़ल की तकनीक के ज़रिए इलाज सिखाने पर ख़ासा जोर रखा गया है. यह एडवांस्ड ट्रॉमा लाइफ सपोर्ट (ए टी एल एस ) के दिशानिर्देशों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है.
गौरतलब है कि ए टी एल एस में कॉपीराइट की पेचीदगियाँ है.यह महंगा भी है और उन क्षेत्रों में उपलब्ध ही नहीं, जहां इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है. इसे ध्यान में रख कर ही आई सी आर सी ने ई आर टी सी कोर्स की परिकल्पना की है. यह ख्याल या रवैया इस सोच से उपजा है कि आपातकालीन स्थितियों में सबसे ज़रूरी यह होता है कि गंभीर रूप से घायल लोगों की हालत का तुरंत आकलन किया जाए. उनकी गंभीर हालत के पीछे मौजूद समस्या को पहचाना जाए और फिर जल्दी से जल्दी ज़रूरी इलाज उपलब्ध कराया जाए ताकि मरीजों की जान बच सके.
इसमें विशेषज्ञ सर्जनों, ओर्थोपेडिशियनों और एनेस्थीसियोलोजिस्टिस समेत हाल ही में ग्रेजुएट हुए मेडिकल कर्मियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घटनास्थल पर सबसे पहले वही उपलब्ध होते हैं. कोर्स का मुख्य उद्देश्य भाग लेनेवाले सभी सदस्यों को उन विभिन्न परिस्तिथियों से अवगत कराना है, जो जानलेवा साबित हो सकती हैं. गौरतलब है कि मरीजों के उचित और कारगर इलाज के लिए उनकी हालत का स्थिर होना सबसे पहली अनिवार्यता है. इस कोर्स में उस ज़रूरी मुद्दे पर ही सबसे ज्यादा जोर दिया गया है.
ट्रेनिंग के तरीकों में लेक्चर और प्रेजेंटेशन (भाषणों और प्रस्तुति) के अलावा प्रत्यक्ष उदाहरण या वास्तविक स्थिति की नक़ल जैसे हालात पर आधारित प्रदर्शनों की मदद ली जाती है. इसमें प्राक्रतिक आपदा की तैयारी, उस दौरान सदस्यों की भूमिका और योगदान, आपदा के समय अपनाए जाने वाले क़दमों का अभ्यास , तुरंत विभिन्न तरीकों से कृत्रिम सांस देना, शरीर में द्रव्यों के माध्यम से जिंदगी की बागडोर वापस जोड़ना आदि-आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है. इनमें सीधे गले में नली डाल कर कृत्रिम सांस देने के अलावा बैग और मास्किंग जैसे विभिन्न तरीकों का प्रशिक्षण भी शामिल है. इसके अलावा घटनास्थल पर लोगों की हालत जल्दी से जल्दी स्थिर करके उन्हें बिना और कोई नुकसान पहुंचे नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाना भी इस कोर्स के पाठ्यक्रम का हिस्सा है.
इन प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन अलग-अलग केंद्रों पर किया जाता है. इनमें लोगों की एक निश्चित संख्या में चुन कर उन्हें प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है और व्यक्तिगत रूप में नहीं बल्कि एक समूह या टीम के तौर पर काम करने पर ख़ास जोर दिया जाता है. इस कोर्स में ग्रुप डिस्कशन यानी सामूहिक बातचीत को बदावा देकर प्रशिक्षण पा रहे सदस्यों की कार्यकुशलता का स्तर सुधारने पर ख़ास जोर है. हर एक कदम का बार-बार अभ्यास कराया जाता है और उनका विश्लेषण या जांच की जाती है ताकि किसी भी कदम पर की जा रही गलतियों को खोजा और सुधारा जा सके. सकारात्मक आलोचना की यह नीति और रवैया ना केवल गलतियों से बचने बल्कि कार्यकुशलता बढ़ाने में भी काफी कारगर सिद्ध होती हैं.
घटनास्थल या उन इलाकों और उस दिशा में काम कर रहे लोगों समेत भाग ले रहे सदस्य भी यहाँ अपने अनुभव साझा करते हैं और आपसी संवाद के माध्यम से आपदा के दौरान सामने आने वाली विभिन्न परिस्थितियों से जल्दी से जल्दी अवगत होकर तालमेल बिठाने और निबटने के तरीके सिखाते हैं. ग्रुप के लोगों में यह संवाद की प्रक्रिया और भावना उनकी आपसी समझ और तालमेल को भी बढ़ाती है. सदस्यों के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान की लगातार जांच की जाती है. कोर्स के पहले, उसके दौरान और पूरा होने के बाद भी अलग-अलग परीक्षाओं के रूप में.
आपातकालीन ट्रॉमा मामलों में स्थानीय डॉक्टरों को विशेषज्ञता हासिल कराने में ई आर टी सी काफी मददगार साबित हो रहा है. यह ना केवल उनकी क्षमता बढ़ाने में सहायक है बल्कि पूरक भी सिद्ध हो रही है. उम्मीद है कि इस प्रशिक्षण की मदद से स्थानीय तौर पर उपलब्ध स्वास्थ्यकर्मी सहायकों को वहां मौजूद सीमित संसाधनों में भी ट्रॉमा मरीजों को सिलसिलेवार तरीके से संभालने और इलाज करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा वो अपने अन्य स्टाफ को भी ट्रॉमा चोटों वाले मामले में बेहतर प्रबंधन का प्रशिक्षण दे सकेंगे. वो ना केवल अपना बल्कि साथ काम कर रहे बाकी लोगों का स्तर भी तेजी से सुधार सकेंगे और उन्हें बेहतर काम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकेंगे.
ट्रॉमा मरीजों की ज्यादा सक्षम तरीके से देखभाल के लिए इसमें नए तरीकों और जानकारियों का इस्तेमाल और समावेश तो है ही पर मुख्य जोर इस बात पर है कि इस प्रक्रिया के मानक कदम तय कर दिए जाएँ और इलाज उसी मानक प्रक्रिया पर आधारित हो. इस बात का भी ख़ास ध्यान रखा जाए कि अपने पास पहले से मौजूद ज्ञान और जानकारी को ही आकलन और प्राथमिक जांच का आधार बनाया जाए ताकि प्रभावी तरीके से हालात पर काबू पाया जा सके. आम तौर पर इन इलाकों में उन हालातों में हाईटेक आधुनिकतम उपकरणों और संसाधनों की भारी कमी जैसी विकट स्थिति पैदा हो जाती है और जान बचाना एक गंभीर चुनौती के तौर पर पेश आती है. यह कोर्स प्रतिभागियों को उसी स्थिति के लिए तैयार करता है.
ढाई दिन का यह ट्रेनिंग कार्यक्रम संकाय के अनुभवी सदस्यों की देखरेख में आयोजित होता है. एबीसीडीई सिद्धांत का प्रयोग करके इसे प्राइमरी और सेकेंडरी सर्वे के तौर पर सरल तरीके से समझाया और सिखाया जाता है. कोर्स की समाप्ति पर सहभागियों से गुप्त तौर पर जानकारी इकट्ठी की जा सकती है ताकि इस बात का आकलन और रिकॉर्ड रखा जा सके कि वो कितना सीखे, सिखाने वाले अपने काम में कितना सफल रहे और भविष्य के लिए कोर्स में और क्या सुधार किया जा सकता है. इसके अलावा कुछ प्रश्नों के माध्यम से यह भी जांचा जाता है कि कोर्स पूरा करने के बाद इन लोगों के आत्मविश्वास में कितनी बढ़ोतरी हुई.
अलग-अलग स्तर और विशेषज्ञता वाले डॉक्टर तो ट्रॉमा टीम का हिस्सा होते ही हैं पर अब हाल में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि इस टीम के अन्य सदस्य भी ख़ास तौर पर प्रशिक्षित हों. नर्सों और पैरामेडिक्स (जो डॉक्टर या नर्स ना हों पर एमरजेंसी हालात में उपचार कर मरीजों की हालत अस्पताल पहुँचने तक स्थिर रखने के लिए प्रशिक्षित हों) को भी अब इस कोर्स में इसलिए जगह दी जा रही है क्योंकि इस टीम के सदस्य होने के नाते उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. उन्हें जल्दी से जल्दी और बड़ी संख्या में इस कोर्स से जोड़ा जा रहा है. मानवीयता के आधार पर लोगों की जान बचाने और उनकी दिक्कतों और पीड़ा को कम करने के प्रयास में आई सी आर सी ने इस दिशा में पहल करते हुए बड़ा कदम उठा कर एक नया उदाहरण और मिसाल पेश की है. मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को समर्पित एक संगठन के रूप में.
स्वास्थ्यकर्मियों की क्षमता,संख्या और कौशल बढ़ाने का आई सी आर सी का यह प्रयास इस उद्देश्य से प्रेरित है कि हिंसा प्रभावित इलाकों में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके और उनकी पीड़ा तथा दुःख-दर्द को किसी भी रूप में किसी भी तरीके से कम किया जा सके,चाहे उन्हें कितनी ही गंभीर चोटें क्यों ना लगी हों. इसी लक्ष्य के तहत दुनिया के जिन भी हिस्सों में इमरजेंसी ट्रॉमा मामलों से गंभीर तौर पर निबटने की ज़रूरत है, इमरजेंसी रूम ट्रॉमा कोर्स यानी ई आर टी सी को उन क्षेत्रों में गंभीरता से सिखाने और कार्यान्वित करने का प्रयास हो रहा है.
दरअसल ई आर टी सी आपातकालीन स्थितियों में ट्रॉमा मरीज़ों की हालत तुरंत स्थिर करने के लिए उठाए जाने वाले ज़रूरी क़दमों पर आधारित कोर्स है. एक समझने में सरल, संक्षिप्त, संपूर्ण और सारगर्भित कोर्स, जो डॉक्टरों को ट्रॉमा प्रबंधन और आपातकालीन स्थितियों में जीवन बचाने के लिए आवश्यक क़दमों के ब्योरे और जानकारी एक ही जगह मुहैया कराता है.
गौरतलब है कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में संसाधनों और समय की कमी का माहौल बन जाता है. उस स्थिति में मानवता के नाते सबसे पहली और बड़ी ज़रूरत घायलों और प्रभावित मरीज़ों की हालत को स्थिर करना पहली प्राथमिकता होती है. एक ऐसी मूलभूत सुविधा, जो मानवता के नाते बुनियादी तौर पर हर इंसान को उपलब्ध होनी चाहिए.
मरीज़ों की हालत स्थिर करने के लिए ज्ञान, जानकारियाँ और हुनर तो ज़रूरी है ही पर पर व्यावहारिक अनुभव और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता काफी मायने रखती है. यहीं पर ई आर टी सी का योगदान महत्वपूर्ण हो जाता है. ट्रॉमा मरीज़ों के प्रबंधन में अधिक से अधिक कुशलता हासिल करके दरवाज़े पर दस्तक दे रही मौत को उलटे पैरों वापस भेज कर.