दुनियाभर में रेड क्रॉस चिन्ह जरूरतमंद लोगों के प्रति एक निष्पक्ष और गैर पक्षपातपूर्ण सेवा का प्रतीक रहा है । इस चिन्ह का इस्तेमाल किसी भी दशा में किसी भी तरह के फायदे के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता ।
यह चिन्ह पीड़ितों के लिए एक उम्मीद की किरण होने के साथ-साथ उन लोगों के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करता है सो विषम परिस्थितियों में भी पीड़ितों की सहायता के लिए जाते हैं । और यही कारण है की इस चिन्ह का इस्तेमाल केवल उन्हीं लोगों द्वारा होना चाहिए जो आधिकारिक रूप से इसके लिए चुने गये हों । इस चिन्ह का इस्तेमाल केवल सेना के चिकित्सक जवानों, अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट मूवमेंट के द्वारा ही किया जा सकता है ।
चिन्ह का इतिहास
1863 में जिनेवा में एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया जिसका मकसद था, युद्ध या संघर्ष की स्थिति में मेडिकल सहायता करने वालों के लिए कुछ ऐसा करना ताकि उन्हें बाकी लोगों के बीच आसानी से पहचाना जा सके। नतीजतन सफ़ेद पृष्ठभूमि में लाल रेड क्रॉस के चिन्ह को युद्धक्षेत्र में मेडिकल सहायता पहुंचाने वाले लोगों को अलग पहचान देने के लिए चुन लिया गया । इसका मतलब ये था की युद्ध या संघर्ष के समय रेड क्रॉस के चिन्ह के साथ जा रहे व्यक्ति पर न तो हमला किया जा सकता है और ना ही उसे बंदी बनाया जा सकता है । इसके अलावा रेड क्रॉस के चिन्ह के साथ, पीड़ित भी उन्हें आसानी से पहचान पाते हैं ।
1864 के पहले जिनेवा कन्वेंशन में आधिकारिक रूप से घोषणा की गयी की रेड क्रॉस के चिन्ह को सेना के मेडिकल सर्विस में भी इस्तेमाल किया जा सकता है ।
हालांकि सभी देश इस चिन्ह से खुश नहीं थे । नतीजा ये हुआ की ओटोमन साम्राज्य तथा इजिप्ट ने रेड क्रॉस की जगह रेड क्रिसेंट को चिन्ह के तौर पर चुन लिया तो वहीँ पर्शिया ने सफ़ेद पृष्ठभूमि पर लाल शेर के निशान को चुना । इन सभी चिन्हों को 1929 के कन्वेंशन में मान्यता दे दी गयी और इसी के साथ-साथ 1949 में पहले जिनेवा कन्वेंशन के 38वें आर्टिकल में रेड क्रॉस, रेड क्रिसेंट, लाल शेर और सफ़ेद पृष्ठभूमि में सूरज के निशान को सेना के मेडिकल सर्विस में इस्तेमाल करने की इज़ाज़त भी दे दी गयी । हालांकि बाद में द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान ने 1980 में लाल शेर और सूरज के निशान के जगह रेड क्रिसेंट चिन्ह को अपना लिया ।
अगर आपको लगता है की रेड क्रॉस के चिन्हों का इतिहास यहीं खत्म हो गया तो आप गलत हैं । आगे पढ़िए रेड क्रिस्टल की कहानी ।
रेड क्रिसेंट को उसके आकार के कारण कई देशों में धार्मिक भावना से जोड़कर देखा जाने लगा । और इसी गतिरोध को समाप्त करने के लिए दिसम्बर 2005 में स्विट्ज़रलैंड में एक डिप्लोमेटिक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया जहाँ तीसरे चिन्ह यानी रेड क्रिस्टल को रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट के जैसी मान्यता दी गयी । तो इस तरह बने रेड क्रॉस के तीन सेवा में समर्पित चिन्ह – रेड क्रॉस (1864), रेड क्रिसेंट (1929), रेड क्रिस्टल (2005) ।