“सुरक्षा  कार्य के पेशेवर मानक’’ के तीसरे संस्करण के उदघाट्न के अवसर पर आप सब की यहाँ मौजूदगी के लिए मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ और यहां आप सबका स्वागत करता हूँ। दुनिया में लगातार बढ़ती हिंसा की घटनाओं और विभिन्न देशों के आपसी संबंधों में तनाव के मद्देनजर सुरक्षा कार्यों के पेशेवर  मानकों को नए सिरे से परिभाषित करना जरूरी हो गया है और हमारा यह प्रयास उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

यह हमारे लिए एक ऐतिहासिक पल है और इस अवसर पर के लिए मैं अपने सहयोगियों और सलाहकार समूह  द्वारा किए जा रहे काम का उल्लेख करना ज़रूरी समझता हूँ। यह मानक तय कर पाना हमारे द्वारा किए गए सामूहिक प्रयासों का नतीजा है। हमें उम्मीद है कि हम वास्तविक स्थितियों में काम करने के दौरान आशातीत परिणाम हासिल कर पाएंगे।

तनाव और हिंसा की चपेट में फंसे कई क्षेत्रों का दौरा करने के बाद मैं इस बात पर बहुत चिंतित हूँ कि मानवता, कानून और जीवन से जुड़े मूल्यों को ताक पर रख कर नागरिकों की ज़िंदगी और हितों से किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है। उससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि  स्थितियां ना केवल और विकराल होती जा रही हैं बल्कि विभिन्न देशों के बीच टकराव के मामलों की तादाद भी लगातार बढ़ती जा रही है। हमारे सामने जो गंभीर चुनौतियां मौजूद हैं, उनमें से कुछ का जिक्र मैं यहाँ कर रहा हूँ।

हिंसा, संघर्ष  और तनाव से गुज़र रहे क्षेत्रों में अब इस तरह के दौर लंबे  खिंचते जा रहे हैं। इसका सीधा असर और मतलब यह है कि मानवतावादी गतिविधियों को लेकर भी अब दीर्घगामी योजनाएं बनानी पड़ेंगी। संघर्ष की यह घटनाएं अब  शहरी क्षेत्रों में तेज़ी से पैर पसार रही हैं ।

एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि हिंसा, तनाव और संघर्ष के दौर अब देशों की आपसी समस्याओं के रूप में सीमित ना रह कर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जाते है और यह अंतर्राष्ट्रीयकरण समस्या को और उलझा देता है। इससे स्थितियां  हर स्तर पर नाज़ुक होती जा रही हैं। जान-माल का बढ़ता नुकसान, घायलों की संख्या में बढ़ोतरी तथा स्वास्थ्य सेवाओं तथा अन्य नागरिक प्रणालियों में लगातार गिरावट और विघटन की स्थिति। इसके साथ ही हम लगातार यह भी देख रहे हैं कि इन संकटों से प्रभावित हो रहे नागरिकों को व्यापक पैमाने पर सुरक्षा की ज़रूरत है।

हिंसा और तनाव से ना केवल कई देशों के ढांचे बुरी तरह  चरमरा रहे हैं बल्कि सभी क्षेत्रों और स्तर पर इनका गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल रहा है।  स्थिति कितने नाज़ुक दौर में है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की 750 करोड़ की कुल आबादी में से एक चौथाई से ज़्यादा की जनसंख्या  यानी लगभग 200 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं। सिर्फ विस्थापितों की संख्या ही लगभग साढ़े छह करोड़ है. इससे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपना घरबार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ा था।

मोटे तौर पर लगाए गए एक अंदाज़े के अनुसार  पिछले एक साल में सिर्फ चार देशों- अफगानिस्तान, ईराक, सोमालिया और यमन में  मारे गए या घायल हुए नागरिकों की संख्या 26 हज़ार के आसपास रही है। इन हमलों और हिंसक युद्धों या वारदातों में लापता हुए लोगों की विशाल संख्या भी चिंता का विषय है। सिर्फ ईराक में ही अतीत और हाल के सालों में हुई घटनाओं में लगभग ढाई से दस लाख  लोग लापता लोगों की सूची में दर्ज किए गए हैं।

आईसीआरसी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार हाल के सालों में समस्या का एक दूसरा पहलू भी काफी चिंता का विषय बन गया है। सिर्फ सोलह देशों में मरीजों, स्वास्थ्य कर्मियों, अस्पतालों और एम्बुलेंसों पर लगभग दो हज़ार हमले हुए हैं। औसतन प्रतिदिन दो हमलों की दर से। विश्व में लगभग 200 करोड़ लोग तो इन  तनाव और हिंसा की घटनाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो ही रहे हैं लेकिन अब मानवतावादी कार्यों में जुड़े संगठनों के सदस्यों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हो रहे हमले गंभीर चिंता पैदा कर रहे हैं। हमलों की वजह से सुरक्षा नीति के तहत बचाव कार्य करने की कार्यवाही की अब तक अपनाई जा रही नीति में बदलाव करना ज़रूरी होता जा रहा है।

नई ज़रूरतों और स्थितियों के मद्देनज़र हिंसा, संघर्ष और तनाव से प्रभावित क्षेत्रों में मानवतावादी कर्मियों की संख्या ना केवल बहुत तेज़ी से बढ़ रही है बल्कि नए-नए, अलग और विविध क्षेत्रों के लोग भी इनसे इसलिए जुड़ रहे हैं कि अब मांग और ज़रूरत बदल रही है। इन क्षेत्रों में की जाने वाली गतिविधियों के आयाम भी  बदल रहे हैं।

सुरक्षा कार्यों में अब  सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय या मानवतावादी संगठनों  की सक्रियता के अलावा गैरमानवतावादी संगठनों के योगदान की ज़रुरत भी महसूस की जा रही है । विवाद, संघर्ष और टकराव की व्यापकता, विकरालता और संख्या में इजाफा इसकी एक महत्वपूर्ण वजह है।

इनमें  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार परिषद (द ह्यूमन राइट्स काउंसिल),  सदस्य देश, मानवाधिकार और शांति बहाली संस्थाओं के अलावा अन्य संगठनों का योगदान इसलिए ज़रूरी हो रहा है ताकि सुरक्षा के ढांचे को दुरुस्त, नया और विस्तृत बनाने के प्रयासों को सम्पूर्णता?  प्रदान की जा सके. सुरक्षा कार्यों में इनका जुड़ना अब बदलते समय और परिवेश की मांग ही नहीं, जरूरत भी है।

गौरतलब है कि मानवीय हितों की सुरक्षा और शांति की बहाली, पुनर्निर्माण और विकास के लिए गैर पारम्परिक? संस्थाओं और पेशेवरों का योगदान अब काफी अहम होता जा रहा है। पत्रकारों, वकीलों और स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा कई अन्य पेशों से जुड़े लोग भी अब सुरक्षा कार्यों का हिस्सा बन रहे है।

कानूनी बाध्यताओं को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के पारंपरिक तरीकों  के अलावा विविध नए तरीके भी आज़माए जा रहे है। बदलती स्थितियों के मद्देनजर  दृष्टिकोण और तरीकों में बदलाव की यह जरूरत महसूस होने के कारण ‘’सुरक्षा कार्यों में पेशेवर मानक’’ तय करने के प्रयासों ने जोर पकड़ा है।

सुरक्षा कार्यों के लिए अपनाए जाने वाले विभिन्न तरीकों में शांति दूत सेना की मौजूदगी, संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा स्थितियों के आकलन के अनुमान के आधार पर तय किए गए सुरक्षा कदम आर्थिक प्रतिबंधों सैनिक कार्यवाही मानवीयता के आधार पर कूटनीतिक कदम और  पब्लिक कम्युनिकेशन शामिल हैं।

सबसे ज़रूरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तनाव और नाज़ुक स्थिति वाले क्षेत्रों में सुरक्षा कार्य हेतु नागरिकों  से संपर्क करने के लिए डिजिटलाइजेशन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। व्यक्तिगत संपर्क के लिए दुनिया भर के पेशेवर सुरक्षाकर्मी अब कहीं से भी कभी भी न केवल सैटेलाइट इमेजरी बल्कि बिग डाटा  एनालिटिक्स का भी व्यापक तौर पर प्रयोग कर रहे हैं। हिंसा, तनाव और संघर्ष से जूझ रहे इलाकों में गौरतलब है कि इसकी उपयोगिता तथा ज़रूरत तेज़ी से बढ़ती जा रही है।

सारांश कहा जाए तो सुरक्षा कार्यों में मदद, सहयोग और हाथ बंटाना अब केवल मानवतावादी संगठनों का ही कार्यक्षेत्र नहीं रहा  बल्कि कई अन्य पेशेवर और गैर मानवतावादी संगठन भी इस क्षेत्र से जुड़कर उल्लेखनीय काम कर रहे हैं. इस बात पर भी लगातार बहस और विचार-विमर्श हो रहा है कि सुरक्षा प्रदान करने के काम को किस तरह बढ़ावा दिया जाए। सच तो यह है कि ज्यादा बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के मसले पर सिर्फ मानवतावादी संगठनों ही नहीं बल्कि राजनीतिक क्षेत्रों में भी व्यापक पैमाने पर चर्चा हो रही हैI

सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है प्रतिबंधित क्षेत्र में इन मानवतावादी संगठनों को पहुंच उपलब्ध होना। हमारा पहला लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा लोगों के करीब  पहुंचना है. संघर्ष और हिंसा प्रभावित जनसंख्या तक पहुंचने के लिए नए नए तरीकों की खोज की जा रही है।

जिन क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं और संगठन तथा प्रभावित देशों  के प्रतिनिधि या अधिकारी सक्रिय योगदान नहीं दे पा रहे या प्रभावित आबादी तक नहीं पहुँच पा रहे, वहां पर कुछ राष्ट्रीय और स्थानीय संस्थाएं अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद कर रही हैं। यह संस्थाएं  प्रभावित क्षेत्रों में पूरक भूमिका निभाते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अभियानों और प्रयासों में सहयोग प्रदान कर रही हैं। इसके अलावा मानवतावादी क्षेत्र में रवैये, दृष्टिकोण और मानसिकता में भी बदलाव आया है। उनके लिए अब केवल उन क्षेत्रों तक पहुंचना और सेवाएं उपलब्ध कराना ही नहीं  बल्कि प्रभावित आबादी को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना भी अब लक्ष्य का एक हिस्सा बन गया है।

इस तरह प्रभावित क्षेत्रों के व्यक्तियों को अपने अधिकारों, क्षमताओं और इच्छाओं  की सुरक्षा का माहौल उपलब्ध होना या ऐसा माहौल प्रदान करना अब सुरक्षा के मूलभूत उद्देश्यों का हिस्सा बन गया है।  दरअसल संघर्ष प्रभावित क्षेत्र से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर होकर भी स्थितियों का प्रबंधन करना ‘’यानी रिमोट मैनेजमेंट’’ और नई तकनीकों के इस्तेमाल की भूमिका अब काफी महत्वपूर्ण हो गई है।

हाल की स्थितियों को देखते हुए इस बात को गंभीरता से महसूस किया जा रहा है कि अब सुरक्षा कार्यों में और इनके लिए तय मानकों पर खरा उतरने के लिए पेशेवर रवैया अपनाए जाने की  ज़रूरत है। मैं इस बात में पूरा यकीन रखता हूं कि सुरक्षा की ज़रूरत वाले क्षेत्रों में काम कर रहे संगठनों को अब सहयोग करने और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए काफी पेशेवर और मजबूत होने की जरूरत है।

क्यों  महत्वपूर्ण है ऐसे समुदायों की आवश्यकता?

मानवतावाद के कार्यों में अब  विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग की आवश्यकता और लगातार बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर

अब मानवता कार्यों में शामिल हुए या सहयोग कर रहे सभी संगठनों के बीच अब  बेहतर प्रबंधन और सहयोग की आवश्यकता जरूरी हो गई है। मानवतावादी गतिविधियों और कार्रवाई के दौरान अपनाए जाने वाले सभी नियमों और कायदे-कानूनों के बारे में अपने स्टाफ को पूरी जानकारी देना और परिचित कराना भी इस बढ़ती हुई जरूरत का एक हिस्सा है।

मानवतावादी गतिविधियों से जुड़े सभी संगठन प्रभावित समुदायों के लिए अच्छा काम करना चाहते हैं लेकिन सीमित क्षमता के कारण वह लगातार अच्छी सुविधाएं या कार्य नहीं कर पाते। कई बार तो संसाधनों की सीमितता की वजह से विभिन्न समुदायों को सुरक्षा प्रदान करने को लेकर अपने काम और क्षमता को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक और बेहतर तरीके से पहुंचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों पर इनका प्रतिकूल असर भी पड़ जाता है और दुष्परिणाम  भी भुगतने पड़ते हैं ।

सुरक्षा कार्यों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि कई बार मतभेद होने के बावजूद तय मानकों पर ही भरोसा किया जाए और उन्हें अपनाया जाए।  इनका अंतर्संचालित होना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया होनी चाहिए तभी सुरक्षा कदमों का यह दायरा प्रभावपूर्ण रहेगा। यह तथ्यों पर आधारित तर्कों की मदद से ही संभव है।

एक बार मानक तय हो जाने के बाद प्रभावित जनसंख्या के लिए एक जवाबदेही का दायरा बन जाता है. सही कार्यक्रमों और नीतियों को अपनाकर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रभावित क्षेत्रों के नागरिकों, समुदायों और निजी हैसियत में सक्रिय  भूमिका निभा रहे व्यक्तियों की जरूरतों और हितों की सुरक्षा का काम ज्यादा बेहतर ढंग से और सुचारु रुप से किया जा सके. इसके लिए इसमें उनके योगदान से कारगर योजनाएं बनाने में भी काफी मदद मिलती है।

मानवीय कार्यों से जुड़े हुए संगठनों के लिए यह एक दोहरी चुनौती और ज़िम्मेदारी है:

सबसे पहली बात यह कि उन्हें कि वह नैतिक तौर पर इस बात के लिए पूरी तरह प्रतिबंध हूं कि वह  बिना किसी तरह का नुकसान पहुंचा है पहुंचाए अपनी क्षमता का बेहतरीन उपलब्ध कराएंगे।

इस बात का खास ध्यान रखना पड़ता है कि सुरक्षा कार्यों के दौरान वहां  योगदान देने वाले लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी ढंग से निभाते हुए अपना बेहतरीन वहां पर उपलब्ध कराएं और इससे किसी भी तरह का नुकसान ना हो।

जिस दूसरी महत्वपूर्ण बात का ख्याल रखना पड़ता है वह यह है कि उन्हें यह सुनिश्चित करना पड़ता है उन देशों की सरकारों को ऐसा महसूस ना हो कि वह उन्हें रिप्लेस कर रहे हैं। कि वह सरकार का विकल्प नहीं है बल्कि उनका साथ देने वाली संस्था के तौर पर काम कर रही हैं।

‘’सुरक्षा कार्य के पेशेवर मानक’’  के तीसरे संस्करण में वर्तमान स्थितियों और हालात का खास ख्याल रखा गया  है। इसके अलावा तकनीकी के क्षेत्र में लगातार हो रहे सुधार के मद्देनजर अब सूचनाओं का प्रबंधन और डाटा  की सुरक्षा का खास ध्यान रखा जाता है. इसमें यह नए मानक सही मार्गदर्शन उपलब्ध करा सकते हैं।

विभिन्न मानवतावादी संगठनों में सूचनाओं, आंकड़ों और डाटा के आदान प्रदान से सही समय पर  महत्वपूर्ण सूचनाएं और जानकारी उपलब्ध करा कर प्रभावित क्षेत्रों में ज़रूरी ऑपरेशनल रिस्पॉन्स को अंजाम दिए जा सकता है।

लेकिन इसमें कई दिक्कतें सामने आ सकती हैं:

उदाहरण के तौर पर मानवीय संगठनों को ईराक और सीरिया में देश के कुछ हिस्सों या आबादी तक पहुंचने में मानवीय संगठनों पर प्रतिबंध लगा हुआ है इस वजह से कई मामलों में उन्हें पूरी सूचना उपलब्ध नहीं है और सुरक्षा प्रदान करने में गंभीर चुनौतियां मौजूद हो सकती हैं इस वजह से यह दूरी यह अधूरी और सही प्रतिक्रिया आने में और सही कदम उठा पाने में अंतराल हो सकते हैं।

सूचनाओं का जिम्मेदारी भरे तरीके से आदान-प्रदान यह सुनिश्चित कर सकता है कि प्रभावित लोगों तक सही कदम पहुंचाया जा सके जगह समस्या के कुल आकलन और विश्लेषण करने में कोई चूक ना हो।

बायोमेट्रिक डाटा का उपयोग: कई एजेंसियां प्रभावित लोगों का बायोमेट्रिक डाटा जमा कर रहीं हैं।  हाल ही में बांग्लादेश में लाखों शरणार्थियों का बायोमेट्रिक डाटा इकट्ठा किया गया है लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि यह डाटा डाटा जुटाने की अहम जिम्मेदारी किसे दी जाए, उसे जुटाने की अहम ज़िम्मेदारी किसे दी जाए ,कौन जुटाएगा, क्या-क्या डाटा जुटाया जाए अथवा यह डाटा किस-किस को उपलब्ध कराया जाए। डेटा को जांचने के तरीके मैं बदलाव और आकलन के लिए क्या प्रक्रिया अपना ही जाए डाटा के आधार भेज को रखने के क्या ऐसे परिणाम हो सकते हैं जो अन्य इंटेंडेड है ऐसे क्या खतरे हो सकते हैं कि इस डाटा का कोई गलत इस्तेमाल ना कर सके।

सुरक्षा कार्य के पेशेवर मानक का तीसरा संस्करण अब ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेज का रूप ले चुका है जिसमें इन बातों का ख्याल रखा गया है कि इनमें आ रहे बदलावों के मद्देनजर मानक किस तरह तय किए जाएं। जब मानक तय किए जा चुके हैं तब व्यक्तियों या नागरिकों को खतरे में डाले बिना कई गतिविधियां सुचारु रुप से चलाई जा सकती हैं। मानवीय क्षेत्र और मानवीय अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे सभी संगठनों के लिए हिंसा के इस बदलते और नए स्वरूप ले तेरे द्वार में प्रोटेक्शन वर्क एक ऐसा जीती जागती मिसाल के तौर पर निकल कर आया है।

सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे  प्रमुख संगठनों द्वारा तीन साल तक किए गए गहन विचार-विमर्श के बाद अब यह तीसरा संस्करण सामने आया है।  इसमें तय किए गए मानकों को सभी मानवतावादी संगठन आधारभूत फ्रेमवर्क या दिशानिर्देश पुस्तिका मान सकते हैं और  इसकी मदद से वह अपने संगठन या संस्था द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों की जानकारी दे सकते हैं।

आईसीआरसी इन मानकों के संशोधन और अपडेट के लिए समर्पित और प्रतिबद्ध है ताकि इनकी  प्रासंगिकता सार्थकता और महत्व बना रहे और यह अपनाए जाने वाले नियमों को सही रूप में प्रदर्शित करें। पंद्रह सदस्यीय समूह मंडल वाली इस समिति का नेतृत्व आईसीआरसी कर रही है, जिसमें सलाहकार समूह के 14 सदस्य और इच्छुक भागीदार शामिल हैं।

इस अवसर पर मैं एमनेस्टी इंटरनेशनल, डेनिश  रिफ्यूजी काउंसिल, ग्लोबल प्रोटेक्शन क्लस्टर, हैंडीकैप इंटरनेशनल,  ह्यूमैनिटेरियन पॉलिसी ग्रुप, ह्यूमन राइट्स वॉच, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ वोलेंटेरी एजेंसीज, इंटरेक्शन, जेज़ूइट  रिफ्यूजी सर्विस, एमएसएफ, ओसीएचए, ऑक्सफ़ैम, ओएचसीएचआर और यूएनएचसीआर का शुक्रिया अदा करता हूं।

यहां एएलएनएपी (ALNAP – एक्टिव लर्निंग नेटवर्क फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड परफॉर्मेंस) और डीपीकेओ (DPKO- द डिपार्टमेंट ऑफ पीसकीपिंग ऑपरेशंस) का उल्लेख ख़ास तौर से ज़रूरी है, जिन्होंने कुछ चुनिंदा और महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुए विचार विमर्श में हिस्सा लिया और इनके  प्रचार प्रसार.में अपना भरपूर सहयोग दिया।

सुरक्षा कार्य में पेशेवर मानकों के संशोधन, प्रचार-प्रसार करने और इन्हे बढ़ावा देने के लिए और काम में वित्तीय सहयोग प्रदान करने के लिए स्विस एमएफए का शुक्रिया अदा करता हूं. उनके अलावा इस परियोजना में  व्यक्तिगत रूचि और सक्रियता दिखाने के लिए मैं राजदूत ग्रोउ को भी विशेष तौर पर धन्यवाद करता हूं।

उनकी मदद से आज हम सुरक्षा के महत्वपूर्ण मसले पर यह प्रकाशन लांच करने में कामयाब हुए हैं।