देवियों और सज्जनों,

इस समय बेंगलुरु में मौजूद होना और एनेबल मैकाथन को अपना पूरा सहयोग और समर्थन देना मेरे लिए एक बहुत ख़ास और उत्साहित करने वाला अनुभव है. हमें विकलांगों के लिए नई खोजें करने वाले कुछ बहुत ही विशेष भागीदारों के साथ मिल कर काम करने का ख़ास मौका मिला है.  हमें आशा है कि यहाँ भाग ले रही सभी चुनी हुई टीमें विभिन्न भागीदारों  की मदद से अपनी कल्पना को हकीकत में साकार कर सकेंगी और कारगर उपकरण बना पाने में कामयाब होंगी. मेरा मानना है कि किसी विकलांगता के साथ जी रहे ज़रूरतमंद व्यक्तियों की हर संभव मदद करने के लिए नई सोच और सृजनात्मकता का संगम होना एक बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया है.

आई सी आर सी सिर्फ एक 150 सालों से ज्यादा पुराना संगठन ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा एक ऐसा विश्वस्तरीय संगठन है, जिसने गुजरे सालों के दौरान नई परिस्थितियों और ज़रूरतों से तालमेल बिठाया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने विकलांगों का जीवन स्तर सुधारने की दिशा में नई खोज करने और उपकरण बनाने की दिशा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है. इनमें से कुछ समाधान रोज़मर्रा की गतिविधियों और क्रियाकलापों के दौरान उपजे हैं जबकि कई एनेबल मैकाथन जैसे अभियानों या प्रक्रियाओं की देन हैं. यह अभियान इस समय बेंगलुरु और लंदन में एक साथ चल रहा है.

नए अनुसंधान या खोजें विकलांगों के लिए नए मार्ग और संभावनाओं के द्वार खोलती हैं. 2015 में एनेबल मैकाथन की शुरुआत एक ऐसा गहन अभियान शुरू करने के मकसद से ही हुई थी कि विकलांग व्यक्ति ही अन्य लोगों के साथ मिलकर अपनी ज़रूरत के अनुसार नए उपकरणों का निर्माण करें.  इस अभियान का मुख्य उद्देश्य था कि विकलांग व्यक्ति खुद ही अपनी  ज़रूरतों का आकलन करें और विशेषज्ञ सहयोगियों की एक ऐसी टीम जुटाई जाए, जिसके साथ मिल कर विकलांग सहभागिता में नए समाधान ढूँढने के लिए जी-जान से प्रयास करें.

180 उपकरणों में से पांच उपकरण अंतिम चक्र में पहुंचे. इनमें मानसिक लकवे से पीड़ित बच्चों के लिए एक ऐसी व्हीलचेयर शामिल है, जिसे आउटडोर स्थानों पर भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. इन व्हीलचेयरों में एक अलग से जोड़ा जा सकने वाला हिस्सा है, जो आउटडोर गतिविधियों के दौरान मददगार साबित होगा. इसके अलावा बैठने या खड़े होने में सहारा दे सकने वाला अपनी इच्छानुसार प्रयुक्त किया जा सकता सिस्टम इसे काफी उपयोगी बना देगा.  अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उतारे जाने से पहले इस समय भारत के अस्पतालों ( क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज और इंडियन स्पाइनल इंजुरीज़ सेंटर) में इनका क्लिनिकल परीक्षण चल रहा है..

मैकाथन का इस साल का सफ़र काफी उत्साहजनक रहा है और इसने विकलांगों, खोजकर्ताओं, उद्यमियों और मानवीय संगठनों को एक साथ आने का मंच प्रदान किया है. एक ऐसा मंच, जो विकलांगता भरे जीवन की कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे सबसे ज़रूरतमंद लोगों के लिए उनकी आवश्यकताओं पर खरा उतरने वाले सक्षम और कारगर उपकरण बना भी सकें और पहुंचा भी सकें. हमने हाल ही में इस अभियान में कई नए सहभागियों को जोड़ा है. इनमें से एक ग्लोबल डिसएबिलिटी  इनोवेशन हब (जी डी आई ) है. उसने भी लंदन में ऐसे  ही शिविर का आयोजन किया है.

किफायती उपकरणों के अनुसंधान और खोज के क्षेत्र में भारत पूरे विश्व में ख्याति अर्जित कर चुका है. मुझे बताया गया है कि विभिन्न भाषाओं से समृद्ध इस विविधता में एकता वाले देश में एक शब्द ‘’जुगाड़’’ बहुत ही लोकप्रिय है. भारत के सामाजिक और आर्थिक परिवेश, उपलब्ध परिस्थितियों, प्रतिभाशाली खोजकर्ताओं और  ‘’जुगाड़’’ की इस अद्भुत क्षमता वाली मानसिकता के कारण नए कारगर उपकरणों को बनाने, उनका परीक्षण करने और व्यापक पैमाने पर उनका उत्पादन करके इन्हें पूरी दुनिया तक किफायती कीमत में पहुंचा पाने की अनुकूल  परिस्थितियाँ भारत को निर्माण कार्य से जुड़ने की दिशा में एक आदर्श मुकाम प्रदान करती हैं. मुझे इस बात का पूरा एहसास है कि मैं उस शहर में हूँ, जो अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी शहर है. यही वो वजह है जिसकी वजह से बेंगलुरु को मैकाथन के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पाया गया.

मैं पैनल परिचर्चा में शामिल होने और उन चुने गए प्रतिभागियों से मिलने को लेकर बहुत उत्सुक हूँ, जिन्हें विकलांग प्रतिभागियों और अन्य भागीदारों के बीच हुए गहन और गंभीर विचार-विमर्श के बाद चुना गया है. हमें उम्मीद है कि जिन जटिल परिस्थितियों में द इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस काम करती है, उसे ध्यान में रखते हुए आप लोग ऐसे कारगर उपकरण और कुछ उपयोगी समाधान उपलब्ध करा पायेंगे, जिन्हें हम आसानी से इस्तेमाल कर सकें.

अनुसंधान को बढ़ावा देने के क्षेत्र में अपनी इस सफलता के कारण भारत इस मामले में अन्य देशों के सामने एक बेहतरीन उदाहरण पेश कर सकता है ताकि वह अन्य देशों को ऐसे ही अनुसंधान अभियानों को शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर सके.

एनेबल मैकाथन का मूलभूत उद्देश्य है विकलांगों की ‘’ज़रूरतों को सुनना और समझना’’ और ऐसे उपकरणों या समाधानों की खोज तथा सहनिर्माण की प्रक्रिया में जुटी टीमों में विकलांगों को अभिन्न अंग के तौर पर शामिल करना. मैं इस थीम पर होने वाले विचार-विमर्श का हिस्सा बनने और इन वक्ताओं के समाधानों को ‘’सुनने ‘’ के लिए बेताब हूँ . हमें इस मौके पर यह भी सोचना है कि नई मानवीय खोजों के क्षेत्र में काम कर रहे इन विभिन्न संगठनों को कैसे साथ जोड़ना है और संवाद शुरू करने तथा उसे बढ़ावा देने के अलावा लगातार इस दिशा में प्रगति और सुधार की  गति को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है.

आप सभी लोगों ने आज दोपहर यहाँ मौजूद रह कर हमारी जो हौसलाअफजाई की है, उसका मैं तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ.