क्रिस्टीन बर्ली और संदीप वासलेकर द्वारा 

पानी, शांति और सुरक्षा पर 22 नवंबर, 2016 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आयोजित किए गए  ऐतिहासिक सत्र के बाद से  संकटपूर्ण स्थितियों वाले क्षेत्रों में पानी के बुनियादी ढाँचे और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बचाने की ज़रूरत काफी गंभीरता से महसूस की गई है. नई सोच और तरीके खोजे जाने तथा सहभागिता के दृष्टिकोण की आवश्यकता के अलावा अब पानी के मसले पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का रवैया अपनाना काफी ज़रूरी होता जा रहा है.

पानी की बुनियादी व्यवस्थाओं और हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी संयंत्रों  जैसे महत्वपूर्ण ढांचों को आतंकवादी हमलों से परे  सुरक्षित रखने और बचाने के लिए इस साल फरवरी में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा  सुरक्षा  परिषद् संशोधन  2341 पारित किया गया।  दुनिया के 15 देशों द्वारा पानी और विश्व शांति मुद्दे पर ध्यान देने के लिए गठित किए गए  एक उच्च स्तरीय पैनल की सितंबर में ज़ारी की गई रिपोर्ट में तनाव और हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पानी के संयंत्रों को बचाने के लिए ज़रूरी कई महत्वपूर्ण सुझाव, प्रस्ताव और सिफारिशें काफी विस्तारपूर्वक पेश किए गए.

पिछले कई सालों से इराक और सीरिया में हथियारबंद अवांछित पक्षों, ताकतों और संगठनों द्वारा बांधों और उन पर नियंत्रण या कब्ज़े को लेकर किए जा रहे युद्ध और प्रयासों के मद्देनज़र अंतरराष्ट्रीय समुदाय काफी चिंतित है. दक्षिण पश्चिम एशिया में इन दो देशों से गुजरने वाली इयूफ्रेटिज़ नदी पर मौजूद बांधों पर कब्ज़े के बाद ‘’पानी’’ को ही युद्ध के सबसे प्रभावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

एक बार  कब्ज़ा होने के बाद निचले क्षेत्र के इलाकों की आबादी में छोड़े जाने वाले पानी के बहाव पर नियंत्रण करके इसे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यह क्षेत्र बड़े-बड़े अपराधियों के पनाहगाह भी बन जाते हैं.  इसके अलावा बिजली की कालाबाज़ारी करके उससे जुटाए जा रहे धन का इस्तेमाल हथियार खरीदने के लिए किया जाता है. ग़ाज़ा, यमन और यूक्रेन में होने वाली हिंसक और तनावपूर्ण झड़पों में पानी का इन्फ्रास्ट्रक्चर और संचालन व्यवस्था काफी हद तक बर्बाद हो चुका है। विशेषज्ञों को डर है कि भविष्य में यही समस्या और खतरा एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर उभर सकता है.

आई सी आर सी इराक, सीरिया, यमन , ग़ाज़ा और यूक्रेन और दुनिया के कई हिस्सों  में पानी के संसाधनों पर पैदा हुए खतरे से प्रभावित होने वाले समुदायों से बचाने के लिए लंबे समय से काम कर रहा है। आई सी आर सी इन क्षेत्रों में पानी आपूर्ति प्रणालियों की मरम्मत करने और उन्हें बहाल करने के लिए ज़रूरी कलपुर्जे उपलब्ध कराने के अलावा स्थानीय स्टाफ को प्रशिक्षण भी मुहैया करा रहा है.

यह शिविरों में मौजूद शरणार्थियों और  कलह के कारण अपने मूल स्थान से विस्थापित हुए नागरिकों की ज़रूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ट्रकों द्वारा पानी उपलब्ध करा रहा है. भविष्य की ज़रूरतों और  लंबे समय तक पानी के एक ख़ास स्तर को बरकरार  रख पाने के उद्देश्य से आई सी आर सी शहरी जल प्रणाली और ढाँचे को दुरुस्त और बेहतर करने के लिए भी प्रयासरत है.

बीते सालों के दौरान आई सी आर सी द्वारा हिंसा या तनाव प्रभावित क्षेत्रों में पानी के संयंत्रों को बचाने पर जोर देने की आपातकालीन कार्यवाही के कदम उठाया जाना अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून की उस अवधारणा के मद्देनज़र है कि सभी देशों को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए. युद्ध में लिप्त सभी देशों या पक्षों पर यह बाध्यता अनिवार्य रूप से लागू होनी  चाहिए कि वो पानी के संयंत्रों को नुकसान के दायरे से बाहर रखे.

इनमें पीने के पानी के संयंत्रों, सिंचाई सुविधाओं और बांधों समेत नागरिक आबादी के अस्तित्व के लिए ज़रूरी चीजों की विशेष सुरक्षा के लिए  अंतर्राष्ट्रीय  मानवीय कानून द्वारा तय मानक शामिल हैं.  इसके अलावा  अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून ने रिहायशी इलाकों और नागरिक  ठिकानों पर हमलों  के विरुद्ध भी मानक तय कर रखें हैं. ऐसे इलाकों पर हमला करने पर पाबंदियां हैं. तनाव और हिंसा में लिप्त सभी पक्षों को ऐसे क़दमों और कार्यवाही से बचना चाहिए, जो अत्यधिक नुकसानदेह हो. इसके लिए उन्हें काफी एह्तियात बरतनी चाहिए.

इसके बावजूद आम, निर्दोष और निरीह नागरिकों के हितों और सुरक्षा की नीति का पालन नहीं किया जा रहा और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून द्वारा तय मानकों का सरेआम उल्लंघन करते हुए प्राणघातक हथियारों का   गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल किया जा रहा है.  अब समय आ गया है कि इन सिफारिशों, प्रस्तावों और नियमों को लघुकालीन और दीर्घकालीन उपायों के रूप में और अधिक मजबूती  से लागू किया जाए.

पानी के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून को सहयोग और समर्थन देने तथा  बनाए  रखने के लिए एक उपयुक्त तरीका पानी की सुरक्षा की सामूहिक ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना है. इसके लिए नदियों के किनारों पर बसे देशों के बीच पानी के संसाधनों के बंटवारे को लेकर सक्रिय सहयोग, संवाद और तालमेल बहुत ज़रूरी है।

50 देशों की सरकारों के भूतपूर्व प्रमुखों के समूह ने यह खुलासा किया है कि  जल्दी ही इंटरएक्शन काउंसिल (आई ए सी) स्ट्रेटेजिक फोरसाईट ग्रुप ( एस एफ जी ) द्वारा तैयार किया गया वाटर कोऑपरेशन कोशेंट (डब्ल्यू सी क्यू)  सिस्टम लागू करने पर जोर देगी. इसके तहत  पानी के बंटवारे को लेकर सक्रिय  सहयोग कर रहे  देश पानी से जुड़े मामले या किन्हीं अन्य मुद्दों और स्थितियों को लेकर  युद्ध नही करेंगे. यह कोशेंट दुनिया भर के सभी  286  साझा  नदी क्षेत्रों  के गहन अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर तैयार किया गया है.  जब नदियों के तटों और किनारों पर बसे सभी देशों में आपस में मजबूत रिश्ता और तालमेल होगा, तभी जल के बंटवारे को लेकर आपसी सहमति होगी और युद्ध का खतरा कम किया जा सकेगा.

युद्ध में उलझे देशों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संस्थानों  को समर्थन और सहायता उपलब्ध कराना निहायत ज़रूरी कदम है. युद्धग्रस्त क्षेत्रों में विस्थापित हुई आबादी की ज़रूरी आवश्यकताओं की पूर्ति और पानी के संयंत्रों को बहाल करने के लिए उन्हें सुरक्षित आवाजाही उपलब्ध कराना दोनों पक्षों के लिए बाध्यता हो.

इसके लिए ज़रूरी है कि हिंसा से प्रभावित इन क्षेत्रों में पानी, बिजली और स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को लेकर आवश्यक आपूर्ति कायम रख  पाने की व्यवस्था हो. ख़ास तौर से लंबे समय से हिंसा, तनाव और युद्ध की स्थितियों का सामना कर रहे क्षेत्रों में आपातकालीन योजनाएं तैयार हो और उसमें स्थानीय संस्थाओं, विभिन्न मूलभूत सेवाएं  प्रदान करने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स और मानवीय संगठनों के बीच पूरा तालमेल, समझौता और भागीदारी हो.

पानी के बंटवारे पर पड़ोसी देशों के बीच मतभेद , विवाद और तनाव या युद्धों को सुलझाने और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून को मजबूती प्रदान करने के लिए सभी देशों द्वारा  व्यावहारिक तथा परस्पर तालमेल और सहयोग भरा  रवैया अपनाना अब आवश्यक हो गया है.

संयुक्त राष्ट्र संघ का शांति अभियान संचालन विभाग युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में काम करने में सक्षम पानी के इंजीनियरों को ज़रूरी प्रशिक्षण दे सकती है. पानी के संयंत्रों की बहाली सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भागीदारी करने वाले देशों की सेना और उसके अधिकारी काफी महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं.  इस काम के लिए वो काफी उपयुक्त हैं. खासतौर से ऐसे देशों की सेनाएं, जिनमें पानी के संसाधनों और स्त्रोतों के रखरखाव तथा उन्हें ठीक करने व आपूर्ति बहाल कर सकने की प्रक्रिया में योगदान दे सकने वाले प्रशिक्षित इंजीनियर मौजूद है.

पानी को लेकर युद्ध में उलझे देशों के बीच सीज़फायर कराने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इनके अलावा वो राजनायिकों के बीच वार्ताओं की संभावना के मौके तलाशने का प्रयास कर  सकती है ताकि युद्ध में उलझे देशों में समझौता हो सके. मानवीय संगठनों और शांति सेनाओं को  पानी के संयंत्रों और केंद्रों की मरम्मत के लिए  अनुमति हासिल करवाने में भी सुरक्षा परिषद् अहम भूमिका निभा सकती है. इस तरह पानी से जुड़े मुद्दों पर सीज़ फायर की स्थिति लाकर पानी, सुरक्षा और शांति के वैश्विक लक्ष्य को बढ़ावा दिया जा सकता है.

कुल मिला कर जो समाधान सामने आए, वो हैं, पानी के संयंत्रों और प्रणाली की मरम्मत के लिए सीज़फायर और सुरक्षित आवाजाही उपलब्ध कराना, शहरी पानी की प्रणालियों को आपातकालीन स्थितियों में भी सुचारू रखने के तरीकों में सुधार करना, पानी का बंटवारा कर रहे देशों के बीच परस्पर सक्रिय सहयोग को बढ़ावा देना, उनके राजनयिक  संबंध सुधारना और उन्हें वित्तीय साझेदारी के लिए प्रोत्साहित करना. इन पड़ोसी देशों को साझा पानी की सुरक्षा में सहयोग करने के नए तरीके और रास्ते खोजने पड़ेंगे. इन देशों को  बांधों, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्रों, पाइपलाइन, जलाशयों तथा अन्य सुविधाओं का संचालन संयुक्त रूप से करने की दिशा में गंभीरता से सोचना होगा

21वीं सदी की सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि अब विश्व शांति बनाए रखने के दीर्घकालीन उपाय के रूप में पानी की सुरक्षा के लिए ब्लू पीस अप्रोच को सुनिश्चित करना होगा. पानी संकट और झगड़े का आधार या स्त्रोत नहीं, शांति और सहयोग के  प्रतीक के रूप में स्थापित और मान्य  किया जाना ज़रूरी है.

पानी अब पृथ्वी, सभ्यताओं और देशों के विकास की प्रक्रिया की कड़ी में महज एक साधन भर नहीं बल्कि  वैश्विक शांति और सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण आधारस्तंभ  है.


क्रिस्टीन बर्ली आई सी आर सी में उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत है. संदीप वासलेकर अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक संगठन स्ट्रैटजिक फोरसाइट ग्रुप (एस एफ जी) के अध्यक्ष हैं.